Tuesday, August 24, 2010

कथा संसार

रिश्तें 
राखी सिर पर थी और भाई बैचेन की दीदी को  राखी पर कम से कम पांच सो सात सो साडी तो देनी पड़ेगी ऊपर से दीदी के यहाँ आने जाने का खर्चा और किराया  अलग से  
उसे याद था की बचपन में दीदी की गिफ्ट के लिए वह अपनी गुल्लक न्योछावर करने को तैयार रहता था मगर अब वह जब कमाने लगा हे कमरतोड़ महंगाई ने कमजोर  कर दिया हे उसे सो उसने दीदी को फ़ोन पर कहा - सारी दीदी इस बार राखी पर शायद नहीं आ पाउगा 
दीदी भी अपने भाई का स्वभाव और उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति जानती थी सो बड़े मन से बोली कोई बात नहीं भाई में राखी पोस्ट कर देती हू  मगर इस बार तुझसे  डबल गिफ्ट चाहिए साडी तो तू हमेशा देता हे पर इस बार  मुझे साडी वाड़ी नहीं बल्कि तेरे यहाँ की गजक पट्टी और रेबडी नमकीन दोनों चाहिए और तुझे कसम हे यदि तुने पाव पाव से ज्यादा भेजी तो क्योकि ये दोनों न तो तेरे  जीजाजी को ज्यादा भाती हे और न बच्चे ज्यादा खाते हैं और में अकेली भला कितना खा सकती हु सुना हैं रघु मामा किसी काम से आने वाले हे तो उनके हाथ मेरा गिफ्ट भेजना मत भूलना 
फ़ोन पर बातचीत ख़त्म होने के बाद दोनो  आंसू पोछ रहे थे   

Friday, August 20, 2010

नयी कहानी

प्रतिमाएँ
उनका काफिला जैसे ही बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के नज़दीक पहुँचा, भीड़ ने घेर लिया। उन नग-धड़ंग अस्थिपंजर-से लोगों के चेहरे गुस्से से तमतमा रहे थे। भीड़ का नेत्तृव कर रहा युवक मुट्ठियाँ हवा में लहराते हुए चीख रहा थामुख्यमंत्री---मुर्दाबाद ! रोटी कपड़ा दे न सके जो, वो सरकार निकम्मी है! प्रधानमंत्री !---हाय!हाय!1 मुख्यमंत्री ने जलती हुई नजरों से वहां के जिलाधिकारी की ओर देखा। आनन-फानन में प्रधानमंत्री जी के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के हवाई निरीक्षण के लिए हेलीकाप्टर का प्रबंध कर दिया गया। वहां की स्थिति सँभालने के लिए मुख्यमंत्री वहीं रुक गए।
हवाई निरीक्षण से लौटने पर प्रधानमंत्री दंग रह गए। अब वहां असीम शांति छायी हुई थी। भीड़ का नेतृत्व कर रहे युवक की विशाल प्रतिमा चौराहे के बीचोंबीच लगा दी गई थी। प्रतिमा की आँखें बंद थी, होंठ भिंचे हुए थे और कान असामान्य रूप से छोटे थे। अपनी मूर्ति के नीचे वह युवक लगभग उसी मुद्रा में हाथ बाँधे खड़ा था। नंग-धड़ंग लोगों की भीड़ उस प्रतिमा के पीछे एक कतार के रूप में इस तरह खड़ी थी मानो अपनी बारी की प्रतीक्षा में हो। उनके रुग्ण चेहरे पर अभी भी असमंजस के भाव थे।
मुख्यमंत्री सोच में पड़ गए थे। जब से उन्होंने इस प्रदेश की धरती पर कदम रखा था, जगह-जगह स्थानीय नेताओं की आदमकद प्रतिमाएँ देखकर हैरान थे। सभी प्रतिमाओं की स्थापना एवं अनावरण मुख्यमंत्री के कर कमलों से किए गए होने की बात मोटे-मोटे अक्षरों में शिलालेखों पर खुदी हुई थी। तब वे लाख माथापच्ची के बावजूद इन प्रतिमाओं को स्थापित करने के पीछे का मकसद एकदम स्पष्ट हो गया था। राजधानी लौटते हुए प्रधानमंत्री बहुत चिंतित दिखाई दे रहे थे।
दो घंटे बाद ही मुख्यमंत्री को देश की राजधानी से सूचित किया गया-आपको जानकर हर्ष होगा कि पार्टी ने देश के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं विशाल प्रदेश की राजधानी में आपकी भव्य,विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया है। प्रतिमा का अनावरण पार्टी-अध्यक्ष एवं देश के प्रधानमंत्री के कर-कमलों से किया जाएगा। बधाई !


घंटियाँ
कुछ भी कहो, गलत तरीकों से इकट्ठा किया गया रुपया फलता नहीं हैं। महेन्द्र ने अपना मग बियर से भरते हुए कहा।
बेकार की बात है, रतन ने कहाआज ऐसे लोग ही फल-फूल रहे हैं।
मैं साबित कर सकता हूँ। जिला अस्पताल वालें। डाक्टर चंद्रा को ही ले लो। उसने गरीब मरीजों के लिए अस्पताल में आई दवाएँ बाज़ार में बेच-बेचकर खूब रुपया बटोरा था और पागलखाने में एड़िया रगड़ रहा है।
यह संयोग भी हो सकता है। रतन चिढ़कर बोला।
नरेश के बिजनेस पार्टनर नागराजन को तो भूले नहीं होंगे। उसने जिस तरह नरेश को धोखा देकर अपनी प्रोपर्टी बनाई, वो किसी से छिपा नहीं है। आज अपने दोनों बेटों से हाथ धो बैठा है।
महेन्र्द बोलता जा रहा था, पर रतन की आँखों के आगे भारत-पाकिस्तान बँटवारे का वह दिन घूमने लगा था,जब दंगों के कारण दुमेल से भागते हुए अपने पड़ोसी पंडित रामनाथ को उनके कमरे में बंद कर दिया और उनके मंदिर में लगी सोने की घंटियाँ चुराकर हिंदुस्तान भाग आया था। कमरा बंद होने के कारण रामनाथ भाग नहीं पाया था और दंगाइयों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था। आज उसकी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति के पीछे पंडित के मंदिर से चुराए गए सोने का बहुत योगदान था।
मैंने तो गलत तरीकों से धन बटोरने वालों को तबाह होते ही देखा है। महेन्द्र ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा।
इतनी देर में रतन बियर के तीन मग और हलक से नीचे उतार चुका था। उसे लगा, आज महेन्द्र जानबूझकर उससे इस तरह की बातें कर रहा है।
बकवास बंद करो। एकाएक वह चिल्ला पड़ा।
महेन्द्र ने हैरानी से अपने दोस्त की ओर देखा।
लगता है---ज्यादा हो गई , चलो भीतर चलकर खाना खाते हैं। महेन्द्र कुर्सी से उठा तो उसके कोट की आस्तीनों पर लगे पीतल के बटन खनखनाए ।
रतन को लगा, महेन्द्र घंटी बजाकर उसे चिढ़ा रहा है।
हरामजादे, घंटी बजाता है। वह चीखा, उसने पूरी ताकत से एक घूँसा अपने दोस्त के जबड़े पर जड़ दिया। इसी झोंक में वह अपना संतुलन भी खो बैठा और मेज, उस पर रखे काँच के सामान समेत वहीं ढेर हो गया---पर घंटियाँ अभी उसके कानों में बज रहीं थीं।
खरबूजा
बड़े साहब आफिस से घर लौटे तो काफी थके हुए लग रहे थे। चपरासी ने उनके सूटकेस के साथ-साथ एक पुराना टू इन वन और प्रेशर कुकर भी भीतर रखा तो मेम साहब चौंक पड़ीं।
ये सब किसका है? उन्होंने साहब से पूछा ।
वही---चीफ साहब, वे चिढ़कर बोलेमीटिंग के बाद चलने लगा तो बोले-हमारा टू इन वन और प्रेशर कुकर कई दिनों से खराब पड़ा है, तुम्हारे शहर में अच्छी दुकानें हैं, रिपेयर कराकर भेज देना।
अपना टेप रिकार्डर भी महीनों से खराब पड़ा है, उसे भी साथ भेजना न भूलिएगा, मेम साहब ने कहा,---हाँ, याद आया, राम खिलावन पर सख्ती कीजिए---चोरी करने लगा है।
मैं आज विरमानी स्टोर्स गई थी, मैंने बातों ही बातों में उससे कहा कि मिक्सी की मरम्मत के बहुत पैसे ले लिये। तब उसने मुझे बताया कि राम खिलावन ने ही वाउचर में कुछ रुपए बढ़वाए थे।
राम खिलावन! बड़े साहब ने सख्त आवाज़ में कहाकब से कर रहे हो चोरी?
मैं कुछ समझा नहीं, हुजूर! वह बिना घबड़ाए बोला।
विरमानी कह रहा था, तुमने उस ट्यूब लाइट वाले वाउचर में कुछ रुपए बढ़वाए थे?
अच्छा, वो राम खिलावन ने कहाआपने उस दिन शाम को मिक्सी रिपेयर करवाने को दी थी, स्टोर बद हो चुका था इसलिए मैं मिक्सी घर ले गया था। हुजूर! मेरी घरवाली थोड़ी तेज है, पूछने लगी-यह क्या है,किसका है। मुझे सबकुछ बताना पड़ा। बस, फिर क्या था, पीछे पड़ गई । कहने लगी-साहब लोग द्फ्तर के खर्चे से न जाने क्या-क्या घर ले जाते हैं, मुझे भी एक सिलबट्टा चाहिए। हुजूर आपकी मिक्सी रिपेयर के वाउचर में उसी सिलबट्टे के लिए कुछ रुपए बढ़वाए थे। राम खिलावन ने रुककर बारी-बारी से साहब और मेम साहब की ओर देखा, फिर ढिठाई से बोलाइसे चोरी तो नहीं कहेंगे, साहब!
तू बहुत बातें बनाने लगा है। चल जा---काम कर्। इस बार बड़े साहब की आवाज़ खोखली थी
संस्कार

उसे लगा, पिताजी अपनी भीगी आँखों से एकटक उसी की ओर देख रहे हैं। उसने सूखे तौलिए से उनकी रुग्ण,कृशकाया को धीरे-धीरे पोंछा और फिर पत्नी को आवाज दी, “सुनीता ज़रा पाउडर का डिब्बा तो देना! फिल्मी पत्रिका पढ़ने में तल्लीन पत्नी ने उसकी आवाज़ सुनकर बुरा-सा मुँह बनाया और फिर पाउडर का डिब्बा लेकर बेमन से उसके पास आ गई। तभी पलंग के पास पड़े मल के पाट और बलगम भरी चिलमची पर नज़र पढ़ते ही उसने जल्दी से साड़ी का पल्लू नाक पर रख लिया। उसने चिढ़े हुए अंदाज में पति को घूरा और पैर पटकते हुए लौट गई।
बेटा,” पिता ने काँपती आवाज़ में कहा, “तुम थक गए होगे। जाओ, आराम करो। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे इस शरीर से जल्द से जल्द मुक्त कर दे। तभी नन्हा राजू अपने पिता के पास आया, पलंग के पास पड़ी बलगम भरी चिलमची उठाकर बोला, “मैं इछको बाथलूम में लख आऊँ?” वह अपने बेटे को देखता रह गया। पत्नी भी राजू की ओर देखने लगी थी।
जाओ---रख आओ।उसकी आवाज़ भर्रा गई ।
भगवान तुझ जैसा बेटा सबको दे।वृद्घ की डबडबाई आँखें छलक पड़ी थीं, “तुझे मेरा मल-मूत्र साफ करना पड़ता है---मुझे अच्छा नहीं लगता। अपने साथ तुझे भी नरक में रगड़ रहा हूँ।
पिताजी, आप ऐसा क्यों सोचते हैं? यह मेरा कर्त्तव्य है। वैसे भी आजकल के हालात को देखते हुए---रुककर उसने एक निगाह अपनी पत्नी और बाथरुम से लौटते हुए बेटे पर डाली, “मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ---सिर्फ अपने लिए कर रहा हूँ।
बेटा! तुझसे जीतना मुश्किल है--- मुझे ज़रा बिठा दे। उसने पिता को उठाकर बैठा दिया। उसने एक हाथ से उनकी पीठ को सहारा देते हुए दूसरा हाथ गाव तकिए के लिए बढ़ाया ही था कि पत्नी लपककर उसके पास आई और उसने फुर्ती से तकिया अपने ससुर की पीठ के पीछे लगा दिया ।

Thursday, August 19, 2010

कही अनकही









दीमक
 किसन !—” बड़े साहब ने चपरासी को घूरते हुए पूछा, “तुम मेरे कक्ष से क्या चुराकर ले जा रहे थे?”
कुछ नहीं साहब।
झूठ मत बको!—” बड़े साहब चिल्लाए, “चौकीदार ने मुझे रिपोर्ट किया है, तुम डिब्बे में कुछ छिपाकर ले जा रहे थेक्या था उसमें? सच-सच बता दो नहीं तो मैं पुलिस में तुम्हारे खिलाफ—”
नहींनहीं साहब! आप मुझे गलत समझ रहे हैं—” किसन गिड़गिड़ाया, “मैं आपको सब कुछ सच-सच बताता हूँमेरे घर के पास सड़क विभाग के बड़े बाबू रहते हैं, उनको दीमक की जरूरत थी, आपके कक्ष में बहुत बड़े हिस्से में दीमक लगी हुई है । बसउसी से थोड़ी-सी दीमक मैं बड़े बाबू के लिए ले गया था। इकलौते बेटे की कसम !मैं सच कह रहा हूँ ।
बड़े बाबू को दीमक की क्या जरूरत पड़ गई !बड़े साहब हैरान थे।
मैंने पूछा नहीं,” अगर आप कहें तो मैं पूछ आता हूँ ।
नहींनहीं,” मैंने वैसे ही पूछा, “—अब तुम जाओ।बड़े साहब दीवार में लगी दीमक की टेढ़ी-मेढ़ी लंबी लाइन की ओर देखते हुए गहरी सोच में पड़ गए।
मिस्टर रमन!बड़े साहब मीठी नज़रों से दीवार में लगी दीमक की ओर देख रहे थे, “आप अपने कक्ष का भी निरीक्षण कीजिए, वहां भी दीमक ज़रूर लगी होगी, यदि न लगी हो तो आप मुझे बताइए, मैं यहाँ से आपके केबिन में ट्रांसफर करा दूँगा। आप अपने खास आदमियों को इसकी देख-रेख में लगा दीजिए, इसे पलने-बढ़ने दीजिए । आवश्यकता से अधिक हो जाए तो काँच की बोतलों में इकट्ठा कीजिए, जब कभी हम ट्रांसफर होकर दूसरे दफ्तरों में जाएँगे, वहाँ भी इसकी ज़ररूरत पड़ेगी।
ठीक है, सर! ऐसा ही होगा—” छोटे साहब बोले। देखिए—” बड़े साहब का स्वर धीमा हो गया-हमारे पीरियड के जितने भी नंबर दो के वर्क-आर्डर हैं, उनसे सम्बंधित सारे कागज़ात रिकार्ड रूम में रखवाकर वहाँ दीमक का छिड़काव करवा दीजिएन रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी

गणित
 भूकंप प्रभावित क्षेत्र में निरीक्षण के लिए जा रहे बड़े साहब ने सहायक अभियंता से कहा, “आपको पता ही है कि मैं कल उत्तरकाशी जा रहा हूँ। सुना है,वहाँ जबरदस्त ठंड पड़ रही है। भूकंप पीड़ितों के लिए जो बजट हमें मिला था, उसमें अभी दस हज़ार शेष हैं। इसी मद से आप मेरे लिए दस्ताने,ऊनी टोपी, सन ग्लासेस, जैकेट, स्लीपिंग बैग और दौरे में खाना गर्म रखने के लिए कैसेरोल का एक सैट खरीद लें।” सर!छोटेसाहब ने सकुचाने का सुंदर अभिनय करते हुए कहा, “---अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं भी एडजस्टकरवा लूँ।
ठीक है---ठीक है---बड़े साहब ने जल्दी से कहा,---“पर देखिएगा हमारा कोई आइटमछूट न जाए औ---र---हाँ---,जैकेट और स्लीपिंग बैग हजरतगंज की फुटपाथ पर विदेशी सामान बेचने वालों से ही खरीदिएगा, वे बिल्कुल असली माल रखते हैं। छोटे साहब के जाने के बाद वह काफी निश्चिन्त नज़र आ रहे थे। एकाएक उन्होंने कुछ सोचा और फिर घंटी बजाकर बड़े बाबू को बुलाया।
बड़े बाबू!वह गर्व से बोले-इस महीने हमारा दो दिन का वेतन भूकंप राहत कोष में भिजवाना न भूलिएगा।










आखिरी तारीख
वर्माजी !उसने पुकारा।
बड़े बाबू की मुद्रा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उनकी आँखें बंद थीं और दाँतों के बीच एक बीड़ी दबी हुई थी। ऐश-ट्रे माचिस की तीलियाँ और बीड़ी के अधजले टुकड़ों से भरी पड़ी थी।
सुरेश को आश्चर्य हुआ। द्फ्तर के दूसरे भागों से भी लड़ने-झगड़ने की आवाज़ें आ रही थीं। बड़े बाबू की अपरिवर्तित मुद्रा देखकर वह सिर से पैर तक सुलग उठा। उसकी इच्छा हुई एक मुक्का उनके जबड़े पर जड़ दे ।
वर्माजी, आपने आज बुलाया था!अबकी उसने ऊँची आवाज में कहा।
बड़े बाबू ने अपनी लाल सुर्ख आँखें खोल दीं। सुरेश को याद आया---पहली दफा वह जब यहाँ आया था तो बड़े बाबू के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ था। तब बड़े बाबू ने आदर के साथ उसे बिठाया था और उसके पिता की फाइल ढ़ूँढ़कर सारे कागज़ खुद ही तैयार कर दिए थे। दफ्तर के लोग भी एकाग्रचित् हो काम कर रहे थे।
बड़े बाबू अभी भी उसकी उपस्थिति की परवाह किए बिना टेबल कैलेंडर पर एक तारीख के इर्द-गिर्द पेन से गोला खींच रहे थे। उसने बड़े बाबू द्वारा दायरे में तारीख को ध्यान से देखा तो उसे ध्यान आया, आज महीने का आखिरी दिन है और पिछली दफा जब वह यहाँ आया था, तब महीने का प्रथम सप्ताह था। बड़े बाबू के तारीख पर चलते हाथ से ऐसा लग रहा था मानो वे इकतीस तारीख को ठेलकर आज ही पहली तारीख पर ले आना चाहते थे।
एकाएक उसका ध्यान आज सुबह घर के खर्चे को लेकर पत्नी से हुए झगड़े की तरफ चला गया। पत्नी के प्रति अपने क्रूर व्यवहार के बारे में सोचकर उसे हैरानी हुई। अब उसके मन में बड़े बाबू के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि वह अपनी पत्नी के प्रति की गई ज्यादती पर पछतावा हुआ।वह कार्यालय से बाहर आ गया
फिल्मी आँख
गुनगुनाते हुए वह बस में घुसा, एक सरसरी निगाह सवारियों पर डाली। आँखों ने जैसे ही उस लड़की के चित्र मस्तिक को भेजे, उसका दिल गाने लगा, “तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त,तू---अगले ही क्षण वह उस लड़की के बगल की सीट पर इस तरह सिकुड़ा बैठा था मानो उसे लड़की में कोई दिलचस्पी न हो। उसके चेहरे को देखकर कोई भी दावे के साथ कह सकता था कि वह आसपास से बेखबर किसी घरेलू समस्या के ताने-बाने सुलझाने में लगा है, जबकि वास्तव में वह मस्त-मस्त की धुन के साथ लगातार लड़की की ओर तैर रहा था।
लड़के के इस अभियान से बेखबर लड़की का सिर सामने की सीट से टिका हुआ था, आँखें बंद थीं ।
बस ने गति पकड़ ली थी। ज्यातर यात्री ऊँघ रहे थे। किसी बड़े गड्ढे की वजह से बस को जबदस्त धक्का लगा। मौके का फायदा उठाते हुए उसने अपना शरीर लड़की से सटा दिया। लड़की की तरफ से कोई प्रतिरोध नहीं हुआ । उसे हाल ही में देखी गई फिल्म के वे सीन याद आए, जिनसे हीरो और हीरोइन बस में इसी तरह एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते प्यार करने लगते हैं। दिल की गहराइयों में वह लड़की के साथ थिरकने लगा, “खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों--
लड़की बार-बार अपनी बैठक बदल रही थी, लंबी-लंबी साँसें ले रही थी, सामने की सीट से सिर टिकाए अजीब तरह से ऊपर से नीचे हो रही थी।
दो-तीन बार उसके मुँह से दबी-दबी अस्पष्ट सी आवाज़ें भी निकली थीं । यह देखकर उसे लगा,कि शायद लड़की को उसकी ये हरकतें अच्छी लग रही हैं।
लेकिन तभी बस सिकनेससे पस्त लड़की ने जल्दी से खिड़की का शीशा खोला और सिर बाहर निकालकर उल्टियाँ करने लगी 

कथा संसार

माँ का मर्म
"बधाई हो! घर में लक्ष्मी आई है", कहते हुए नन्हीं सी बिटिया को दादी की गोद में देते हुए नर्स बोली। "हुँह..... क्या खाक बधाई। पहली ही बहू के पहली संतान वो भी लड़की हुई और वो भी सिजेरियन......" कहते हुए उन्होंने मुँह फेर लिया और उस नन्हीं सी जान पर स्नेह की एक बूँद भी बरसाने की जरूरत नहीं समझी प्रीती की सासू माँ ने। जल्द ही अपनी गोद हल्की करते हुए बच्ची को बढ़ा दिया अपने बेटे की गोद में। रवि को तो जैसे सारा जहाँ मिल गया अपने अंश को अपने सामने पाकर। पिछले नौ महीने कितनी कल्पनाओं के साथ एक-एक पल रोमांच के साथ बिताया था प्रीती और रवि ने। खुशी के आँसू की दो बूँदें टपक पड़ी उस नन्ही सी बिटिया पर                                                                                                        
कुछ दिनों के अंतराल पर अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद जब घर जाने की तैयारी हुई तो प्रीती फूली न समा रही थी। पिछले नौ महीनों से जिस घड़ी की इंतजार वह कर रही थी, आज आ ही गई। अपनी गोद भरी हुई पाकर जब प्रीति ने घर में प्रवेश किया तो मारे खुशी के उसके आँसू बहने लगे। वह इस खुशी के पल को संभालने की कोशिश करने लगी। हँसते-खेलते ग्यारह दिन कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला। लेकिन सासू माँ का मुँह टेढ़ा ही बना रहा। प्रीति चाहती थी कि दादी का प्यार उस नन्हीं सी जान को मिले, लेकिन उसकी ऐसी किस्मत कहाँ ?                                                                                                              खैर, जब बारहवें दिन बरही-रस्म की बात आयी तो सासू माँ को जैसे सब कुछ सुनाने का अवसर मिल गया और इतने दिन का गुबार उन्होंने एक पल में ही निकाल लिया...... "कैसी बरही, किसकी बरही, बिटिया ही तो जन्मी है। हमारे यहाँ बिटिया के जन्म पर कोई रस्म-रिवाज नहीं होता.... कौन सी खुशी है जो मैं ढोल बजाऊँ, सबको मिठाई खिलाऊँ.... कितनी बार कहा था जाँच करा लो, लेकिन नहीं माने तुम सब। लो अब भुगतो, मुझे नहीं मनाना कोई रस्म-रिवाज......।                                                                                                               सासू माँ की ऐसी बात सुनकर प्रीति का दिल भर आया। रूँधे हुए गले से बोली, "सासू माँ! आज अगर यह बेटी मेरी गोद में नहीं होती तो कुछ दिन बाद आप ही मुझे बाँझ कहती और हो सकता तो अपने बेटे को दूसरी शादी के लिए भी कहती जो शायद आपको दादी बना सके, लेकिन आज इसी लड़की की वजह से मैं माँ बन सकी हूँ। यह शब्द एक लड़की के जीवन में क्या मायने रखता हैं, यह आप भी अच्छी तरह जानती हैं। आप उस बाँझ के या उस औरत के दर्द को नहीं समझ सकेंगी, जिसका बच्चा या बच्ची पैदा होते ही मर जाते हैं। ये तो ईश्वर की दया है सासू माँ, कि मुझे वह दिन नहीं देखना पड़ा। आपको तो खुश होना चाहिए कि आप दादी बन चुकी हैं, फिर चाहे वह एक लड़की की ही। आप तो खुद ही एक नारी हैं और लड़की के जन्म होने पर ऐसे बोल रही हैं। कम से कम आपके मुँह से ऐसे शब्द नहीं शोभा देते, सासू माँ!" इतना कहते ही इतनी देर से रोके हुए आँसुओं को और नहीं रोक सकी प्रीती।                                                                               प्रीती की बातों ने सासू माँ को नयी दृष्टि दी और उन्हें उसनी बातों का मर्म समझ में आ गया था। उन्होंने तुरन्त ही बहू प्रीती की गोद से उस नन्हीं सी बच्ची को गोद में ले लिया और अपनी सम्पूर्ण ममता उस पर न्यौछावर कर उसको आलिंगन में भर लिया।शायद उन्होंने इस सत्य को स्वीकार लिया कि लड़की भी तो ईश्वर की ही सृष्टि है। जहाँ पर नवरात्र के पर्व पर कुँवारी कन्याओं को खिलाने की लोग तमन्ना पालते हैं, जहाँ दुर्गा, लक्ष्मी, काली इत्यादि देवियों की पूजा होती है, वहाँ हम मनुष्य ये निर्धारण करने वाले कौन होते हैं कि हमें सिर्फ लड़का चाहिए, लड़की नहीं 


वफ़ादारी
द्रौपदी ,भीम अर्जुन ,नकुल ,सहदेव सब एक-एक करके बर्फ़ में गल गए और पीछे छूट गए ।तुम कब तक साथ चलोगे ?लौट जाओ। अभी समय है।’युधिष्ठिर ने अपने साथ चलने वाले कुत्ते से कहा ।
कुत्ता गम्भीर हो गया –‘मैं ऐसा नहीं कर सकता ,बिरादरी में बहुत बदनामी होगी ।’
‘इसमें बिरादरी की बदनामी क्या होगी ?’युधिष्ठिर ने पूछा ।
‘सब कहेंगे-आदमी के साथ रहकर वफ़ादारी छोड़ दी ।

Wednesday, August 18, 2010

नयी सोच


एक फलसफा जो जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभयो से बना

जागरू
कितनी अजीब आत्मकेंद्रित प्रवर्ती हे मानव की मद्दद को हाथ नहीं बढाता हा मतलब हो तो हाथ जरुर उठा देता हे

लड़की अपनी धुन में मस्त चली जा रही थी रात के सन्नाटे में उस आधुनिका के सेंडिलो से उठती खट खट की आवाज काफी दूर तक सुनाई दे रही थी जैसे ही वो उस पाश कालोनी के बीचो बीच बने पार्क नजदीक पहुची वह पहले से छिपे दो बदमाश उससे छेड़छाड़ करने लगे
लड़की ने कान्वेंटी अंदाज में ' शट अप यू बदमास ' वगेरह कहकर अपना बचाब करना चाह पर जब वे गन्दी हरकत नापाक हरकते करते हुए उसके कपडे नोचने लगे तो वह बचाओ बचाओ चिल्लाने लगी उसकी चीख पुकार पार्क के चारो और कतार से बनी कोठियो से टकराकर लौट आयी कोई बाहर नहीं निकला
वे लड़की को पार्क के झुरमुट की और खीच रहे थे उनके चंगुल से मुक्त होने के लिए वह बुरी तरह झटपटा रही थी
तभी वहा से गुजर रहे लावारिस कुत्ते की नजर वहा पड़ी और देख कर जोर जोर से भोकने लगा जब उसके भोकने का उन बदमाशो पर कोट असर नहीं पड़ा तो वह बोखला कर इधर उधर दौड़ने लगा कभी घटना स्थल की और जाता तो कभी किसी कोठी के गेट की और जाकर भोकने लगता मानो वहा रहने वालो को घटना के बारे में बताना चाहता हो उसके इस प्रयास पर लोहे के गेटो के उस पार तैनात विदेसी नस्ल के कुत्ते उसे हिकारत से देखने लगे इधर संघर्षरत लड़की के कपडे तार तार हो गए थे हाथ पैर शिथिल पड़ते जा रहे थे बदमाशो को अपने मकसद में कामयाबी मिलती नजर आ रही थी
यह देख कर गली का कुत्ता मुह उठाकर जोर जोर से रोने लगा कुत्ते की रोने की आवाज इस बार इस बार कोठियो से टकराकर वापस नहीं लौटी क्योकि वहा रह
ने वालो को अच्छी तरह मालूम था की कुत्ते का रोना घर में अशुभ होता हे देखते ही देखते तमाम कोठियो में चहल पहल दिखाई देने लगी छतो पर , बालकनियो पर लोग दिखाई देने लगे उनके आदेशो पर बहुत से वाचमेन लाठिय -डंडे लेकर कोठियो से बाहर निकले और कुत्ते पर टूट पड़े



माँ का कमरा
बहू बेटे साथ ले आये , यही काफी था उस माँ के लिए नौकरों के कमरे में भी रहेने को तैयार थी, पर ऐसा कहा सोचा था उसने..........

छोटे पुश्तेनी मकान में रह रही बुजुर्ग बसंती को दूर शहर में रहते बेटे का ख़त मिला - 'माँ ,मेरी तरक्की हो गयी हे कंपनी की और से मुझे बहुत बड़ी कोठी मिली हे रहने को अब तो तुम्हे मेरे पास शहर में आकर रहना ही होगा यहाँ तुम्हे कोई तकलीफ नहीं होगी '



पड़ोसन रेशमा को पता चला तो वह बोली- 'अरी रहने दे शहर जाने को शहर में बहू बेटा के पास रहा कर दुर्गति होती हे वह वचनी गयी थी न अब पछ्ता रही हे,रोती हे नौकरों वाला कमरा दिया हे रहने को न वक्त से रोटी न वक्त से चाय कुत्ते से भी बुरी जून हे
अगल ही दिन बेटा कार लेकर आ गया बेटे की जिद के आगे बसंती की एक नहीं चली , "जो होगा सो देखा जायेगा" की सोच के साथ बसंती अपने थोड़े से सामान के साथ कार में बैठ गयी लम्बे सफ़र के बाद कार एक बड़ी कोठी के सामने रूकी एक जरुरी काम हे माँ, मुझे अभी जाना होगा' कहकर बेटा माँ को नौकरों के हवाले कर गया बहू पहले ही काम पर जा चुकी थी और बच्चे स्कूल . बसन्ती कोठी देखने लगी तीन कमरों में डबल बेड लगे थे एक कमरा बहू-बेटे का होगा दूसरा बच्चो का और तीसरा महेमानो के लिए, उसने सोचा पिछवाड़े में नौकरों के लिए बने कमरे भी वह देख आयी कमरे छोटे थे, पर ठीक थे उसने सोचा उसकी गुजर हो जायेगी बस बहू- बेटा और बच्चे प्यार से बोल ले उसे और क्या चाहिए




नौकर ने एक बार उसका सामान बरामंदे के पास वाले कमरे में टिका दिता कमरा क्या था स्वर्ग लगता था डबल बेड बीचा था गुसलखाना भी साथ था टीवी और टेपरिकाडर भी था बसंती सोचने लगी- काश उसे भी ऐसे ही कमरों में रहने का मौका मिलता वह डरते डरते बेड पर लेट गयी बहुत नर्म गद्दे थे उससे एक लोक कथा की नौकरानी की तरहा नींद नहीं आ जाए और बहू आकर लडे सोचकर वह उठ खड़ी हुईशाम को जब बेटा घर आया तो बसंती बोली बेटा मेरा सामान मेरे कमरे में रखवा दो बेटा हैरान होकर बोला माँ तेरा सामान तो तेरे कमरे में ही रखा हुआ हे नौकर ने
बसंती आश्चर्यचकित रह गए ,यह मेरा कमरा हे डबल बेड वाला
हां माँ जब दीदी आती हे तो तेरे पास ही सोना पसंद करती हे और तेरव पोता-पोती भी तो तेरे पास भी सो जाया करेगे तेरे साथ तू टीवी देख भजन सुन कुछ और चाहिए तो बेझिझक बता देना
उसे आलिंगन में ले बेटे ने कहा तो बसंती की आखो में आंसू आ गए