ऊँचाई
उदघाट्न समारोह में बहुत से रंगबिंरगे, खुबसूरत, गोल–मटोल गुब्बारों के बीच एक काला, बदसूरत गुब्बारा भी था, जिसकी सभी हँसी उड़ा रहे थे।‘‘देखो, कितना बदसूरत है,’’ गोरे चिट्टे गुब्ब्बारे ने मुँह बनाते हुए कहा, ‘‘देखते ही उल्टी आती है।’’
‘‘अबे, मरियल!’’ सेब जैसा लाल गुब्बारा बोला, ‘‘तू तो दो कदम में ही टें बाल जाएगा, फूट यहाँ से!’’
‘‘भाइयों! ज़रा इसकी शक्ल तो देखो,’’ हरे–भरे गुब्बारे ने हँसते हुए कहा, ‘‘पैदाइशी भुक्खड़ लगता है।’’ सब हँसने लगे, पर बदसूरत गुब्बारा कुछ नहीं बोला। उसे पता था ऊँचा उठना उसकी रंगत पर नहीं बल्कि उसके भीतर क्या है, इस पर निर्भर है।
जब गुब्बारे छोड़े गए तो काला, बदसूरत गुब्बारा सबसे आगे था
मरुस्थल के वासी
गरीबों की एक बस्ती में लोगों को संबोधित करते हुए मंत्रीजी ने कहा, “इस साल देश में भयानक सूखा पड़ा है। देशवासियों को भूख से बचाने के लिए जरूरी है कि हम सप्ताह में कम से कम एक बार उपवास रखें।” मंत्री के सुझाव से लोगों ने तालियों से स्वागत किया।“हम सब तो हफते में दो दिन भी भूखे रहने के लिए तैयार हैं। भीड़ में सबसे आगे खड़े व्यक्ति ने कहा।मंत्रीजी उसकी बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए और बोले, “जिस देश में आप जैसे भक्त लोग हों, वह देश कभी भी भूखा नहीं मर सकता।मंत्रीजी चलने लगे जैसे बस्ती के लोगों के चेहरे प्रश्नचिह्न बन गए हों।उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा, ‘अगर आपको कोई शंका हो तो दूर कर लो।थोड़ी झिझक के बाद एक बुजुर्ग बोला, साब! हमें बाकी पाँच दिन का राशन कहां से मिलेगा
एक अदालत में मुकदमा पेश हुआ । “साहब, यह पाकिस्तानी है। हमारे देश में हद पार करता हुआ पकड़ा गया है। तू इस बारे में कुछ कहना चाहता है ? मजिस्टेट ने पूछा । मैंने क्या कहना है, सरकार! मैं खेतों में पानी लगाकर बैठा था। हीर के सुरीले बोल मेरे कानों में पड़े। मैं उन्हीं बोलों को सुनता चला आया। मुझे तो कोई हद नजर नहीं आई।
बैल
वह फूट फूटकर रोने लगा ।“इसके दिमाग में गोबर भरा है गोबर” -विमला ने मिक्की की किताब को मेज पर पटका और पति को सु्नाते हुए पिनपिनाई , ‘मुझसे और अधिक सिर नहीं खपाया जाता इसके।मिसेज आनन्द का बंटी भी तो पांच साल का ही है, उस दिन किटी पार्टी में उन्होंने सबके सामने उससे कुछ क्वेश्चन पूछे---वह ऐसे फटाफट अंग्रेजी बोला कि हम सब देखती रह गईं। एक अपने बच्चे हैं---’’
“ मिक्की! इधर आओ।’’ वह किसी अपराधी की तरह अपने पिता के पास आ खड़ा हुआ ।“हाउ इज़ फूड गुड फार अस? जवाब दो बोलो।”
“इट मेक्स अस स्ट्रांग, एक्टिव एंड हैल्पस अस टू----टू---टूऊ ”
“क्या टू - टू लगा रखी है! एक बार में क्यों नहीं बोलते?” उसने आँखें निकालीं, “एंड हैल्प्स अस टू ग्रो।”
“ इट मेक्स असटांग---” वह रुआँसा हो गया।
“ असटांग !! यह क्या होता है, बोलो----‘ स्ट्रोंग’----‘ स्ट्रोंग’----तुम्हारा ध्यान किधर रहता है---हँय ?” उसने मिक्की के कान उमेठ दिए।
“इट मेक्स स्टांग---” उसकी आंखों से आँसू छलक पड़े।
“यू-एस---‘अस’ कहाँ गया । खा गए ! ” तड़ाक से एक थप्पड़ उसके गालों पर जड़ता हुआ वह दहाड़ा, “ मैं आज तुम्हें छोड़ूँगा नहीं---”
“फूड स्टांग अस---”
“क्या ? वह मिक्की को बालों से झिंझोड़ते हुए चीखा ।
“ पापा ! मारो नहीं---अभी बताता हूँ---बताता हूँ --- स्ट्रोंग ---फूड---अस---इट---हाऊ---इज़---” वह फूट फूटकर रोने
ठंडी रजाई
“कौन था ?” उसने अँगीठी की ओर हाथ फैलाकर तापते हुए पूछा ।
“वही, सामने वालों के यहाँ से,” पत्नी ने कुढ़कर सुशीला की नकल उतारी, “बहन, रजाई दे दो, इनके दोस्त आए हैं।” फिर रजाई ओढ़ते हुए बड़बड़ाई, “इन्हें रोज़-रोज़ रजाई माँगते शर्म नहीं आती। मैंने तो साफ मना कर दिया- आज हमारे यहाँ भी कोई आने वाला है।”
“ठीक किया।” वह भी रजाई में दुबकते हुए बोला, “इन लोगों का यही इलाज है ।”
“बहुत ठंड है!” वह बड़बड़ाया।
“मेरे अपने हाथ-पैर सुन्न हुए जा रहे हैं।” पत्नी ने अपनी चारपाई को दहकती अँगीठी के और नज़दीक घसीटते हुए कहा ।
“रजाई तो जैसे बिल्कुल बर्फ हो रही है, नींद आए भी तो कैसे!” वह करवट बदलते हुए बोला ।
“नींद का तो पता ही नहीं है!” पत्नी ने कहा, “इस ठंड में मेरी रजाई भी बेअसर सी हो गई है ।” जब काफी देर तक नींद नहीं आई तो वे दोनों उठकर बैठ गए और अँगीठी पर हाथ तापने लगे।
“एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी?” पति ने कहा।
“कैसी बात करते हो?”
“आज जबदस्त ठंड है, सामने वालों के यहाँ मेहमान भी आए हैं। ऐसे में रजाई के बगैर काफी परेशानी हो रही होगी।”
“हाँ,तो?” उसने आशाभरी नज़रों से पति की ओर देखा ।
“मैं सोच रहा था---मेरा मतलब यह था कि---हमारे यहाँ एक रजाई फालतू ही तो पड़ी है।”
“तुमने तो मेरे मन की बात कह दी, एक दिन के इस्तेमाल से रजाई घिस थोड़े ही जाएगी,” वह उछलकर खड़ी हो गई, “मैं अभी सुशीला को रजाई दे आती हूँ।” वह सुशीला को रजाई देकर लौटी तो उसने हैरानी से देखा, वह उसी ठंडी रजाई में घोड़े बेचकर सो रहा था । वह भी जम्हाइयाँ लेती हुई अपने बिस्तर में घुस गई । उसे सुखद आश्चर्य हुआ, रजाई काफी गर्म थी
“वही, सामने वालों के यहाँ से,” पत्नी ने कुढ़कर सुशीला की नकल उतारी, “बहन, रजाई दे दो, इनके दोस्त आए हैं।” फिर रजाई ओढ़ते हुए बड़बड़ाई, “इन्हें रोज़-रोज़ रजाई माँगते शर्म नहीं आती। मैंने तो साफ मना कर दिया- आज हमारे यहाँ भी कोई आने वाला है।”
“ठीक किया।” वह भी रजाई में दुबकते हुए बोला, “इन लोगों का यही इलाज है ।”
“बहुत ठंड है!” वह बड़बड़ाया।
“मेरे अपने हाथ-पैर सुन्न हुए जा रहे हैं।” पत्नी ने अपनी चारपाई को दहकती अँगीठी के और नज़दीक घसीटते हुए कहा ।
“रजाई तो जैसे बिल्कुल बर्फ हो रही है, नींद आए भी तो कैसे!” वह करवट बदलते हुए बोला ।
“नींद का तो पता ही नहीं है!” पत्नी ने कहा, “इस ठंड में मेरी रजाई भी बेअसर सी हो गई है ।” जब काफी देर तक नींद नहीं आई तो वे दोनों उठकर बैठ गए और अँगीठी पर हाथ तापने लगे।
“एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी?” पति ने कहा।
“कैसी बात करते हो?”
“आज जबदस्त ठंड है, सामने वालों के यहाँ मेहमान भी आए हैं। ऐसे में रजाई के बगैर काफी परेशानी हो रही होगी।”
“हाँ,तो?” उसने आशाभरी नज़रों से पति की ओर देखा ।
“मैं सोच रहा था---मेरा मतलब यह था कि---हमारे यहाँ एक रजाई फालतू ही तो पड़ी है।”
“तुमने तो मेरे मन की बात कह दी, एक दिन के इस्तेमाल से रजाई घिस थोड़े ही जाएगी,” वह उछलकर खड़ी हो गई, “मैं अभी सुशीला को रजाई दे आती हूँ।” वह सुशीला को रजाई देकर लौटी तो उसने हैरानी से देखा, वह उसी ठंडी रजाई में घोड़े बेचकर सो रहा था । वह भी जम्हाइयाँ लेती हुई अपने बिस्तर में घुस गई । उसे सुखद आश्चर्य हुआ, रजाई काफी गर्म थी