खोल से बाहर निकालने का तरीक़ा
जाड़े के दिन थे। एक छोटे बच्चे को कहीं पर एक छोटा कछुआ मिल गया। कछुआ अपनी राह जा रहा था। बच्चे ने उसे देखा, तो हाथों में उठा लिया। उसका स्पर्श पाते ही कछुआ अपने स्वभाव के अनुरूप तुरंत खोल में घुस गया। बच्चे ने लाख कोशिश कर ली, पर उसने मुंह और हाथ-पैर बाहर नहीं निकाले। उसने उन्हें बाहर खींचने की कोशिश की, लकड़ी से कुरेदा, पर कछुआ टस से मस न हुआ। हारकर वह बच्च उसे अपने घर ले आया। उसका ख्याल था कि घर में कछुआ कभी तो खोल से बाहर निकलेगा। लेकिन वहां वह चेहरा जरा सा बाहर निकालता और आसपास देखते ही फिर अंदर कर लेता। बच्चे ने उसके सामने खाना-पानी रखा, पर कोई असर न हुआ।
बच्च बड़ी देर तक इंतजार करता रहा। उसके चाचा उसे लगातार देख रहे थे। आख़िरकार वे बोले, ‘कछुआ भले ही मर जाएगा, पर इस तरह से खोल से बाहर नहीं आएगा। आओ, मैं तुम्हें बताता हूं, उसे बाहर निकालने का सही तरीक़ा क्या है।’ चाचा ने कछुए को उठाया और उसे अंगीठी के पास रख दिया। जाड़े के दिन थे। कछुए को थोड़ी गर्मी का एहसास हुआ, तो उसने पहले सिर निकाला और फिर धीरे से हाथ-पैर भी बाहर निकाल लिए।
बच्च हैरान था कि यह कैसे हो गया। जिस काम के लिए वह घंटे भर से कोशिश कर रहा था फिर भी नाकामयाब रहा, वह पांच मिनट में हो गया। चाचा ने उसे बताया, ‘कछुए ऐसे ही खोल से बाहर आते हैं और इंसान भी। आप उनसे जबरदस्ती कुछ नहीं करा सकते। पहले आपको उन्हें दयालुता के साथ गर्मजोशी देनी पड़ती है, तभी वे आपसे खुलते हैं।’
सबक़
लोगों को आप जितना भी खिला-पिला लें, घर ले जाएं, आव-भगत कर लें, पर वे तब तक आपसे नहीं खुलेंगे, जब तक कि उनसे गर्मजोशी व आत्मीयता का व्यवहार
न किया जाए
बच्च बड़ी देर तक इंतजार करता रहा। उसके चाचा उसे लगातार देख रहे थे। आख़िरकार वे बोले, ‘कछुआ भले ही मर जाएगा, पर इस तरह से खोल से बाहर नहीं आएगा। आओ, मैं तुम्हें बताता हूं, उसे बाहर निकालने का सही तरीक़ा क्या है।’ चाचा ने कछुए को उठाया और उसे अंगीठी के पास रख दिया। जाड़े के दिन थे। कछुए को थोड़ी गर्मी का एहसास हुआ, तो उसने पहले सिर निकाला और फिर धीरे से हाथ-पैर भी बाहर निकाल लिए।
बच्च हैरान था कि यह कैसे हो गया। जिस काम के लिए वह घंटे भर से कोशिश कर रहा था फिर भी नाकामयाब रहा, वह पांच मिनट में हो गया। चाचा ने उसे बताया, ‘कछुए ऐसे ही खोल से बाहर आते हैं और इंसान भी। आप उनसे जबरदस्ती कुछ नहीं करा सकते। पहले आपको उन्हें दयालुता के साथ गर्मजोशी देनी पड़ती है, तभी वे आपसे खुलते हैं।’
सबक़
लोगों को आप जितना भी खिला-पिला लें, घर ले जाएं, आव-भगत कर लें, पर वे तब तक आपसे नहीं खुलेंगे, जब तक कि उनसे गर्मजोशी व आत्मीयता का व्यवहार
न किया जाए
पालतू मछलियां वापस आएंगी क्या
एक आदमी को मछलियां पकड़ने का बहुत शौक़ था। वह जहां भी जाता, झील या तालाब जरूर खोजता। एक बार वह किसी अनजान शहर में झील किनारे बैठकर मछलियां पकड़ रहा था। वह मछलियां पकड़कर पानी भरी बाल्टी में डालता जाता। जब बाल्टी में ढेर सारी मछलियां तैरने लगीं, तो वह होटल वापस जाने के लिए उठा। इसी समय एक सरकारी कर्मचारी ने उसका रास्ता रोक लिया। कर्मचारी ने रोब दिखाते हुए कहा, ‘क्या आप नहीं जानते कि इस झील पर मछलियां पकड़ना मना है?’
आदमी ने जवाब दिया, ‘नहीं, यहां ऐसा कोई बोर्ड भी नहीं लगा है।’ यह सुनकर कर्मचारी की बांछें खिल गईं। उसने अपना मुंह सटाते हुए कहा, ‘चिंता मत कीजिए, मैं आपका ज्यादा नुक़सान नहीं होने दूंगा। यहां मछली पकड़ने का फ़ाइन सौ रुपए है, पर आप तो मुझे दस ही दे दीजिए और आराम से निकल जाइए।’
अब उस आदमी को ग़ुस्सा आया। पर उसने शांति से कहा, ‘मछली पकड़ना मना है..पर मैं तो अपनी पालतू मछलियों को घुमाने लाया था। मैं रोज उन्हें किसी झील, तालाब या पोखर में छोड़ देता हूं और कुछ समय बाद जब सीटी बजाता हूं, तो वे वापस आ जाती हैं।’
कर्मचारी को उसकी बात पर जरा भी यक़ीन नहीं हुआ। उसने व्यंग्य से कहा, ‘अच्छा! जरा मेरे सामने ऐसा करके तो दिखाइए।’ उस आदमी को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। उसने पूरी बाल्टी झील में उलट दी। और वापस जाने लगा। कर्मचारी ने उसे रोका, बोला, ‘मछलियों को वापस तो बुलाओ!’ उस आदमी ने जवाब दिया, ‘कैसी मछलियां? मैं तो यहां ख़ाली हाथ, झील के किनारे टहलने आया था!’
सबक़
जैसे को तैसा जरूरी है। अगर कोई बेईमान, ग़लत काम या भ्रष्टाचार के लिए बाध्य करे, तो उसे बेवकूफ़ बनाने के लिए दिमाग़ लगा कर थोड़ा झूठ बोल देने में बुराई नहीं है।
आदमी ने जवाब दिया, ‘नहीं, यहां ऐसा कोई बोर्ड भी नहीं लगा है।’ यह सुनकर कर्मचारी की बांछें खिल गईं। उसने अपना मुंह सटाते हुए कहा, ‘चिंता मत कीजिए, मैं आपका ज्यादा नुक़सान नहीं होने दूंगा। यहां मछली पकड़ने का फ़ाइन सौ रुपए है, पर आप तो मुझे दस ही दे दीजिए और आराम से निकल जाइए।’
अब उस आदमी को ग़ुस्सा आया। पर उसने शांति से कहा, ‘मछली पकड़ना मना है..पर मैं तो अपनी पालतू मछलियों को घुमाने लाया था। मैं रोज उन्हें किसी झील, तालाब या पोखर में छोड़ देता हूं और कुछ समय बाद जब सीटी बजाता हूं, तो वे वापस आ जाती हैं।’
कर्मचारी को उसकी बात पर जरा भी यक़ीन नहीं हुआ। उसने व्यंग्य से कहा, ‘अच्छा! जरा मेरे सामने ऐसा करके तो दिखाइए।’ उस आदमी को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। उसने पूरी बाल्टी झील में उलट दी। और वापस जाने लगा। कर्मचारी ने उसे रोका, बोला, ‘मछलियों को वापस तो बुलाओ!’ उस आदमी ने जवाब दिया, ‘कैसी मछलियां? मैं तो यहां ख़ाली हाथ, झील के किनारे टहलने आया था!’
सबक़
जैसे को तैसा जरूरी है। अगर कोई बेईमान, ग़लत काम या भ्रष्टाचार के लिए बाध्य करे, तो उसे बेवकूफ़ बनाने के लिए दिमाग़ लगा कर थोड़ा झूठ बोल देने में बुराई नहीं है।
ख़ुद निकाल लो या इंतजार करो
एक बच्चा अपनी मां के साथ किसी रिश्तेदार के घर गया हुआ था। बच्च बड़ा प्यारा था। रिश्तेदार ने जब मां को चाय बनाकर दी, तो बच्चे को भी कुछ देना जरूरी था। सो, वह टाफ़ियों से भरा मर्तबान ले आया। उसने ढक्कन खोलकर बच्चे से कहा, ‘बेटे, इसमें से जितनी चाहो, टाफ़ियां ले लो।’
और कोई बच्च होता, तो ख़ुश होकर तुरंत मर्तबान में हाथ डाल देता, पर इस बच्चे ने कुछ नहीं किया, चुपचाप खड़ा रहा। रिश्तेदार ने दुबारा कहा और मर्तबान उसके थोड़ा और पास ले गया। लेकिन बच्च टाफ़ियों को देखता रह गया, पर उसने हाथ नहीं बढ़ाया। अब तो अजीब स्थिति हो गई। न तो मेजबान ने, न मां ने सोचा था कि वह ऐसी बात करेगा।
मां जानती थी कि बच्चे को टाफ़ियां बहुत पसंद हैं, इसलिए उसे और ज्यादा हैरानी हो रही थी। मां को लगा कि बच्च रिश्तेदार के सामने झिझक रहा है, इसलिए इस बार उसने ख़ुद कहा कि बेटे टाफ़ियां निकाल लो। लेकिन बच्चे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, वह वैसे ही खड़ा रहा।
आख़िर रिश्तेदार ने एक मुट्ठी टाफ़ियां निकालीं और उन्हें बच्चे की दोनों जेबों में डाल दिया। बच्च ख़ुश। अब मां को बेहद उत्सुकता थी यह जानने की कि उसके बच्चे ने इस तरह की तहजीब आख़िर सीखी कहां से! वापसी में घर जाते हुए मां ने बच्चे से पूछा कि उसने टाफ़ियां ख़ुद क्यों नहीं निकालीं, तो बच्चे ने बड़ी गंभीरता से जवाब दिया, ‘मां, तुमने ध्यान नहीं दिया, अगर मैं अपने छोटे-से हाथ से टाफ़ियां लेता, तो आख़िर कितनी आ पातीं! लेकिन चाचाजी ने अपनी मुट्ठी में भरकर टाफ़ियां दीं, तो मेरी दोनों जेबें भर गईं।’
सबक़
जब हम ख़ुद लेते हैं, ख़ुद कोई इच्छा करते हैं, तो हमें अपेक्षाकृत कम ही मिलता है। लेकिन जब भगवान देता है, तो हमारी झोली उम्मीद से भी ज्यादा भर जाती है
और कोई बच्च होता, तो ख़ुश होकर तुरंत मर्तबान में हाथ डाल देता, पर इस बच्चे ने कुछ नहीं किया, चुपचाप खड़ा रहा। रिश्तेदार ने दुबारा कहा और मर्तबान उसके थोड़ा और पास ले गया। लेकिन बच्च टाफ़ियों को देखता रह गया, पर उसने हाथ नहीं बढ़ाया। अब तो अजीब स्थिति हो गई। न तो मेजबान ने, न मां ने सोचा था कि वह ऐसी बात करेगा।
मां जानती थी कि बच्चे को टाफ़ियां बहुत पसंद हैं, इसलिए उसे और ज्यादा हैरानी हो रही थी। मां को लगा कि बच्च रिश्तेदार के सामने झिझक रहा है, इसलिए इस बार उसने ख़ुद कहा कि बेटे टाफ़ियां निकाल लो। लेकिन बच्चे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, वह वैसे ही खड़ा रहा।
आख़िर रिश्तेदार ने एक मुट्ठी टाफ़ियां निकालीं और उन्हें बच्चे की दोनों जेबों में डाल दिया। बच्च ख़ुश। अब मां को बेहद उत्सुकता थी यह जानने की कि उसके बच्चे ने इस तरह की तहजीब आख़िर सीखी कहां से! वापसी में घर जाते हुए मां ने बच्चे से पूछा कि उसने टाफ़ियां ख़ुद क्यों नहीं निकालीं, तो बच्चे ने बड़ी गंभीरता से जवाब दिया, ‘मां, तुमने ध्यान नहीं दिया, अगर मैं अपने छोटे-से हाथ से टाफ़ियां लेता, तो आख़िर कितनी आ पातीं! लेकिन चाचाजी ने अपनी मुट्ठी में भरकर टाफ़ियां दीं, तो मेरी दोनों जेबें भर गईं।’
सबक़
जब हम ख़ुद लेते हैं, ख़ुद कोई इच्छा करते हैं, तो हमें अपेक्षाकृत कम ही मिलता है। लेकिन जब भगवान देता है, तो हमारी झोली उम्मीद से भी ज्यादा भर जाती है
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