Tuesday, September 21, 2010

एक नजरिया

ऊँचाई
 उदघाट्न समारोह में बहुत से रंगबिंरगेखुबसूरतगोलमटोल गुब्बारों के बीच एक कालाबदसूरत गुब्बारा भी थाजिसकी सभी हँसी उड़ा रहे थे।
‘‘
देखोकितना बदसूरत है,’’ गोरे चिट्टे गुब्ब्बारे ने मुँह बनाते हुए कहा, ‘‘देखते ही उल्टी आती है।’’
‘‘
अबेमरियल!’’ सेब जैसा लाल गुब्बारा बोला, ‘‘तू तो दो कदम में ही टें बाल जाएगाफूट यहाँ से!’’
‘‘
भाइयों! ज़रा इसकी शक्ल तो देखो,’’ हरेभरे गुब्बारे ने हँसते हुए कहा, ‘‘पैदाइशी भुक्खड़ लगता है।’’ सब हँसने लगेपर बदसूरत गुब्बारा कुछ नहीं बोला। उसे पता था ऊँचा उठना उसकी रंगत पर नहीं बल्कि उसके भीतर क्या हैइस पर निर्भर है।
जब गुब्बारे छोड़े गए तो कालाबदसूरत गुब्बारा सबसे आगे था




मरुस्थल के वासी
गरीबों की एक बस्ती में लोगों को संबोधित करते हुए मंत्रीजी ने कहा, “इस साल देश में भयानक सूखा पड़ा है। देशवासियों को भूख से बचाने के लिए जरूरी है कि हम सप्ताह में कम से कम एक बार उपवास रखें। मंत्री के सुझाव से लोगों ने तालियों से स्वागत किया।
हम सब तो हफते में दो दिन भी भूखे रहने के लिए तैयार हैं। भीड़ में सबसे आगे खड़े व्यक्ति ने कहा।मंत्रीजी उसकी बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए और बोले, “जिस देश में आप जैसे भक्त लोग हों, वह देश कभी भी भूखा नहीं मर सकता।मंत्रीजी चलने लगे जैसे बस्ती के लोगों के चेहरे प्रश्नचिह्न बन गए हों।उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा, ‘अगर आपको कोई शंका हो तो दूर कर लो।थोड़ी झिझक के बाद एक बुजुर्ग बोला, साब! हमें बाकी पाँच दिन का राशन कहां से मिलेगा

हद
एक अदालत में मुकदमा पेश हुआ । साहब, यह पाकिस्तानी है। हमारे देश में हद पार करता हुआ पकड़ा गया है। तू इस बारे में कुछ कहना चाहता है ? मजिस्टेट ने पूछा । मैंने क्या कहना है, सरकार! मैं खेतों में पानी लगाकर बैठा था। हीर के सुरीले बोल मेरे कानों में पड़े। मैं उन्हीं बोलों को सुनता चला आया। मुझे तो कोई हद नजर नहीं आई



बैल
वह फूट फूटकर रोने लगा ।
इसके दिमाग में गोबर भरा है गोबर” -विमला ने मिक्की की किताब को मेज पर पटका और पति को सु्नाते हुए पिनपिनाई , ‘मुझसे और अधिक सिर नहीं खपाया जाता इसके।मिसेज आनन्द का बंटी भी तो पांच साल का ही है, उस दिन किटी पार्टी में उन्होंने सबके सामने उससे कुछ क्वेश्चन पूछे---वह ऐसे फटाफट अंग्रेजी बोला कि हम सब देखती रह गईं। एक अपने बच्चे हैं---’’
मिक्की! इधर आओ।’’ वह किसी अपराधी की तरह अपने पिता के पास आ खड़ा हुआ ।हाउ इज़ फूड गुड फार अस? जवाब दो बोलो।
इट मेक्स अस स्ट्रांग, एक्टिव एंड हैल्पस अस टू----टू---टूऊ
क्या टू - टू लगा रखी है! एक बार में क्यों नहीं बोलते?” उसने आँखें निकालीं, “एंड हैल्प्स अस टू ग्रो।
इट मेक्स असटांग---वह रुआँसा हो गया।
असटांग !! यह क्या होता है, बोलो----स्ट्रोंग’----‘ स्ट्रोंग’----तुम्हारा ध्यान किधर रहता है---हँय ?” उसने मिक्की के कान उमेठ दिए।
इट मेक्स स्टांग---उसकी आंखों से आँसू छलक पड़े।
यू-एस---असकहाँ गया । खा गए ! तड़ाक से एक थप्पड़ उसके गालों पर जड़ता हुआ वह दहाड़ा, “ मैं आज तुम्हें छोड़ूँगा नहीं---
फूड स्टांग अस---
क्या ? वह मिक्की को बालों से झिंझोड़ते हुए चीखा ।
पापा ! मारो नहीं---अभी बताता हूँ---बताता हूँ --- स्ट्रोंग ---फूड---अस---इट---हाऊ---इज़---वह फूट फूटकर रोने

ठंडी रजाई
कौन था ?” उसने अँगीठी की ओर हाथ फैलाकर तापते हुए पूछा ।
वही, सामने वालों के यहाँ से,” पत्नी ने कुढ़कर सुशीला की नकल उतारी, “बहन, रजाई दे दो, इनके दोस्त आए हैं।फिर रजाई ओढ़ते हुए बड़बड़ाई, “इन्हें रोज़-रोज़ रजाई माँगते शर्म नहीं आती। मैंने तो साफ मना कर दिया- आज हमारे यहाँ भी कोई आने वाला है।
ठीक किया।वह भी रजाई में दुबकते हुए बोला, “इन लोगों का यही इलाज है ।
बहुत ठंड है!वह बड़बड़ाया।
मेरे अपने हाथ-पैर सुन्न हुए जा रहे हैं।पत्नी ने अपनी चारपाई को दहकती अँगीठी के और नज़दीक घसीटते हुए कहा ।
रजाई तो जैसे बिल्कुल बर्फ हो रही है, नींद आए भी तो कैसे!वह करवट बदलते हुए बोला ।
नींद का तो पता ही नहीं है!पत्नी ने कहा, “इस ठंड में मेरी रजाई भी बेअसर सी हो गई है । जब काफी देर तक नींद नहीं आई तो वे दोनों उठकर बैठ गए और अँगीठी पर हाथ तापने लगे।
एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी?” पति ने कहा।
कैसी बात करते हो?”
आज जबदस्त ठंड है, सामने वालों के यहाँ मेहमान भी आए हैं। ऐसे में रजाई के बगैर काफी परेशानी हो रही होगी।
हाँ,तो?” उसने आशाभरी नज़रों से पति की ओर देखा ।
मैं सोच रहा था---मेरा मतलब यह था कि---हमारे यहाँ एक रजाई फालतू ही तो पड़ी है।
तुमने तो मेरे मन की बात कह दी, एक दिन के इस्तेमाल से रजाई घिस थोड़े ही जाएगी,” वह उछलकर खड़ी हो गई, “मैं अभी सुशीला को रजाई दे आती हूँ। वह सुशीला को रजाई देकर लौटी तो उसने हैरानी से देखा, वह उसी ठंडी रजाई में घोड़े बेचकर सो रहा था । वह भी जम्हाइयाँ लेती हुई अपने बिस्तर में घुस गई । उसे सुखद आश्चर्य हुआ, रजाई काफी गर्म थी


पाठशाला

मौत के सामने भी अक्ल दौड़ती रही

जंगल घना था। पेड़-झाड़ इतने थे कि राह नहीं सूझती थी। ऐसे में एक बेचारी लोमड़ी के रास्ते में अचानक शेर आ गया। अब लोमड़ी भागे भी तो किधर। उसे डर तो लग रहा था, पर वह थी पक्की लोमड़ी। सो, तेजी से दिमाग़ के घोड़े दौड़ाने लगी। उधर शेर निश्चिंत था कि शिकार कहीं भागकर नहीं जा सकता। 
वह लोमड़ी पर झपटने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक लोमड़ी ने डपटकर पूछा, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरी राह में आने की? क्या तुम्हें उस भगवान का डर नहीं, जिसने मुझे भेजा है?’ शेर ने ऐसे किसी सवाल के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था। एक पल के लिए तो वह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया। फिर जब उसके भीतर का शेर जागा, तो उसने हिम्मत करके सवाल किया, ‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो? क्या सबूत है कि तुम्हें ईश्वर ने भेजा है?’
लोमड़ी तो इस सवाल के लिए तैयार ही खड़ी थी। उसने कहा, ‘इसमें कौन-सी बड़ी बात। तुम मेरे साथ जंगल में घूमो और ख़ुद ही देख लेना। तुम बस मेरे पीछे-पीछे चलो और अपनी आंखों से देख-जान लो कि जंगल के बाक़ी प्राणी मेरी कितनी इज्जत करते हैं। यहां तक कि वे मेरे रास्ते में भी नहीं आते।
सो, शेर लोमड़ी के पीछे-पीछे चलने लगा। और वाक़ई, उसने देखा कि राह में आने वाले छोटे-मोटे जानवर तो काफ़ी दूर से ही दुम दबाकर भाग जाते थे और बड़े जानवर भी उसके रास्ते में आने की बजाय राह बदलकर निकल जाते थे। Êाहिर है, बाक़ी जानवर लोमड़ी के पीछे चल रहे शेर को देखकर डर रहे थे। पर इस उपाय से लोमड़ी की जान बच गई।

सबक : संकट के समय भी दिमाग़ ठंडा होना होना चाहिए और अक्ल के घोड़े दौड़ते रहने चाहिए, क्योंकि अक्सर ऐसे मौक़ों पर सिर्फ़ अक्लमंदी ही होती है, जो हमें उबार सकती है। बुद्धि ही असली मित्र है

जो डरता है वह डरता ही रहता है

एक चूहा था। उसे बिल्ली से बड़ा डर लगता था। हालांकि यह स्वाभाविक है कि चूहे को बिल्ली से डर लगे, पर इस चूहे को कुछ ज्यादा ही डर लगता था। अपने सुरक्षित बिल में सोते हुए भी सपने में उसे बिल्ली नजर आती। हल्की-सी आहट से उसे बिल्ली के आने का अंदेशा होने लगता। सीधी-सी बात यह कि बिल्ली से भयभीत चूहा चौबीसों घंटे घुट-घुटकर जीता था।
ऐसे में एक दिन एक बड़े जादूगर से उसकी मुलाक़ात हो गई। फिर तो चूहे के भाग ही खुल गए। जादूगर को उस पर दया आ गई, तो उसने उसे चूहे से बिल्ली बना दिया। बिल्ली बना चूहा उस समय तो बड़ा ख़ुश हुआ, पर कुछ दिनों बाद फिर जादूगर के पास पहुंच गया, यह शिकायत लेकर कि कुत्ता उसे बहुत परेशान करता है।
जादूगर ने उसे कुत्ता बना दिया। कुछ दिन तो ठीक रहा, फिर कुत्ते के रूप में भी उसे परेशानी शुरू हो गई। अब उसे शेर-चीतों का बड़ा डर रहता। इस दफ़ा जादूगर ने सोचा कि पूरा इलाज कर दिया जाए, सो उसने कुत्ते का रूप पा चुके चूहे को शेर ही बना दिया। जादूगर ने साचा कि शेर जंगल का राजा है, सबसे शक्तिशाली प्राणी है, इसलिए उसे किसी से डर नहीं लगेगा। 
लेकिन नहीं। शेर बनकर भी चूहा कांपता ही रहा। अब उसे किसी और जंगली जीव से डरने की जरूरत नहीं थी, पर बेचारे को शिकारियों से बड़ा डर लगता। आख़िर वह एक बार फिर जादूगर के पास पहुंच गया। लेकिन इस बार जादूगर ने उसे शिकारी नहीं बनाया। उसने उसे चूहा ही बना दिया। जादूगर ने कहा- चूंकि तेरा दिल ही चूहे का है, इसलिए तू हमेशा डरेगा ही। 
सबक : डर कहीं बाहर नहीं होता, वह हमारे भीतर ही होता है। स्वार्थ की अधिकता और आत्म-विश्वास की कमी से हम डरते हैं। इसलिए अपने डर को जीतना है, तो पहले ख़ुद को जीतना पड़ेगा।

भगवान खिलाए कौन-कौन खाए

एक प्रसिद्ध आदमी था। वह ईमानदारी और मेहनत के साथ समाजसेवा के कार्यो के लिए भी जाना जाता था। एक दिन बाजार में एक भिखारी ने उसके आगे हाथ पसारा। समाजसेवी को न जाने क्या सूझा कि उसने भिखारी से कहा, ‘चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें भीख से कुछ ज्यादा देना चाहता हूं।भिखारी को लेकर वह अपने एक परिचित दुकानदार के पास पहुंचा। समाजसेवी ने कहा कि वह उसे कोई काम दे दे। 
चूंकि लोग उस पर भरोसा करते थे, इसलिए दुकानदार ने भी उसके बताए आदमी, यानी भिखारी को कुछ सामान देकर आसपास के गांवों में बेचने का काम दे दिया। कुछ दिनों बाद जब वह समाजसेवी फिर से बाजार से गुजर रहा था, तो उसने भिखारी को हाथ फैलाए हुए पाया। जब उसने काम के बारे में पूछा, तो भिखारी ने बताया, ‘मैं सामान लेकर गांव-गांव घूमता था। एक बार मैंने देखा कि एक अंधा बाज पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। 
मुझे उत्सुकता हुई कि आख़िर वह अपने लिए खाने का इंतजाम कैसे करता होगा! तभी मैंने देखा कि एक और बाज चोंच में खाना भरकर लाया और उसे खिलाने लगा। तभी मेरे दिमाग़ में आया कि भगवान सबकी परवाह करता है। अगर उसने अंधे बाज के लिए भोजन का प्रबंध किया, तो वह मेरे लिए भी जरूर करेगा। इसलिए मैंने काम छोड़ दिया।उसका क़िस्सा सुनकर समाजसेवी ने इतना ही कहा, ‘यह सही है कि ऊपरवाला कमजोरों का भी ध्यान रखता है। लेकिन वह तुम्हें सबल बनने का विकल्प भी देता है। फिर तुमने अंधा बाज बनने की बजाय खाना खिलाने वाला पक्षी बनने का विकल्प क्यों नहीं चुना?’
सबक : भगवान की आड़ में अपनी अकर्मण्यता और आलस को सही न ठहराएं। जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म का महत्व बता दिया, तो बस भगवान भरोसे ही बैठे रहना मूर्खता ही है

पाठशाला



कौन हंसता है कौन रोता है.

एक आदमी साइकोलॉजिस्ट से मशविरा लेने आया था। वह अपनी बारी के इंतज़ार में चेंबर के बाहर बैठा था। उसकी शक्ल से ही लग रहा था कि वह महादुखी मानव है। चेहरा लटका हुआ, होंठों पर हंसी का एक निशान तक न था।वह औरों से बोलना तो दूर, उनकी तरफ़ देख भी नहीं रहा था। कुछ देर बाद उसका भी नंबर आया। साइकोलॉजिस्ट अनुभवी था। वह उसे देखते ही पहचान गया कि यह अवसाद का केस है। फिर भी उसने समस्या पूछी। आदमी ने बोलना शुरू किया,‘डॉक्टर साहब, मैं हमेशा हताशा में ही डूबा रहता हूं। चाहे कुछ भी कर लूं, मन में उत्साह जागता ही नहीं।  

अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं!’ मनोचिकित्सक ने कहा, ‘मेरे साथ उस खिड़की तक आओ।’ जब वह उसके पीछे वहां तक पहुंचा, तो मनोचिकित्सक ने खिड़की से बाहर इशारा करते हुए कहा, ‘तुम दूर वो तंबू देख रहे हो? वह सर्कस का तंबू है। मैंने वह सर्कस देखा है, बहुत शानदार है। वहां तुम्हें ढेर सारे करतब देखने को मिलेंगे,ख़ासतौर पर एक जोकर के कारनामे देखकर तो हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाओगे। वह जब तक तुम्हारी नज़रों के सामने रहेगा, तुम हंसी नहीं रोक पाओगे। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि एक बार उस जोकर की कलाकारी देख लेने के बाद अवसाद ज़िन्दगी में दुबारा तुम्हारे पास नहीं फटकेगा।’
यह सब सुनकर भी उस आदमी के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई। उसका लटका मुंह देखकर साइकोलॉजिस्ट ने कहा, ‘तुम वहां जाकर तो देखो।’ वह आदमी बोला, ‘साहब, वह जोकर मैं ही हूं।’  

सबक: इस दुनिया में हर कोई अभिनय कर रहा है। हंसी-मजाक की ओट में कोई ग़म छिपा रहा है, तो कोई बेवजह आंसू बहाकर औरों से सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा है

सिक्का उछाल जान लो भाग्य

राजा को गुप्तचरों ने सूचना दी कि पड़ोसी राज्य की सेनाएं उस राज्य पर धावा बोलने के लिए निकल चुकी हैं। उसने सेनापति को उन्हें राज्य की सीमा पर रोक देने का आदेश दिया। सेनापति अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त था, क्योंकि उनके पास कहीं ज्यादा बड़ी सेना थी। लेकिन उसके सैनिकों को अपनी जीत पर संदेह था।सेनापति ने कई तरह से समझाया, दोनों सेनाओं की तुलना के ढेर सारे तथ्य बताए, पर सैनिकों के मन में अकारण बैठ गया था कि हमारी हार ही होनी है। बावजूद इसके सेनापति सेना लेकर निकल पड़ा, पड़ोसी सेना को सीमा पर ही रोक देने के लिए। रास्ते में एक मंदिर था। परंपरा के अनुसार वे वहां पूजा के लिए रुके। सैनिकों ने अपनी जीत की कामना की, पर उन्हें अब भी जीत का भरोसा नहीं था।  

तभी सेनापति ने अपने सैनिकों को संबोधित करना शुरू किया। उसने कहा, ‘हम यह सिक्का उछालकर देखेंगे कि नियति में क्या लिखा है। अगर चित आया, तो हमारी जीत होगी और पट आया, तो हार।’ सैनिक उत्सुकता से देखने लगे। सेनापति ने सिक्का उछाला और यह चित था। सैनिकों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी।  

कहना न होगा कि उन्होंने पड़ोसी राज्य की सेना को न सिर्फ़ अपनी सीमा पर रोक दिया, बल्कि काफ़ी दूर तक खदेड़ भी आए। बाद में एक युवा सैनिक ने सेनापति से कहा, ‘सचमुच, जो नियति में लिखा होता है, वही होता है।’ सेनापति ने जवाब देने की बजाय उसे वह सिक्का दिखा दिया। उस सिक्के के दोनों तरफ़ चित वाला ही निशान था। फिर क्या था, सेनापति वहीं अपना माथा पकड़कर बैठ गया। 

सबक : भाग्य में जो लिखा है, वह तो होगा ही, लेकिन भाग्य में क्या लिखा, यह नियति रचने वाले, यानी ईश्वर के अलावा और कोई भी सही-सही नहीं बता सकता

प्रोत्साहित करने की ताक़त.

एक बार एक वृद्ध व्यक्ति 19 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि और कलाकार दांते गैब्रियल रोसिटी के पास पहुंचा। उस वृद्ध व्यक्ति के पास कुछ स्केच और कलाकृतियां थीं, जिन्हें वह रोसिटी को दिखाना चाहता था, जिससे वह जान सके कि ये पेंटिंग कैसी हैं और कम से कम इनके माध्यम से टैलेंट का पता चल जाए। रोसिटी ने उन्हें बड़े ध्यान से देखा।  

शुरुआत की कुछ कलाकृतियां, जिनमें जरा सा भी कला प्रेम नहीं दिख रहा था, रोसिटी को बेकार लगीं, लेकिन वह एक दयालु आदमी था, इसलिए उसने बड़े ही उदार भाव से कहा कि इन तस्वीरों में योग्यता नजर नहीं आती। ऐसा कहते हुए रोसिटी दुखी हुए, लेकिन उस आदमी से झूठ नहीं बोल सकते थे। वह वृद्ध व्यक्ति दुखी था, लेकिन उसे रोसिटी के निर्णय का इंतजार था। उसने रोसिटी से उसका समय लेने के लिए माफी मांगी और उसे कुछ और कलाकृतियां दिखाई। इन्हें एक स्टूडेंट ने बनाया था।  

रोसिटी ने जब इन स्केच को देखा, तो वह उन्हें देखकर खुशी से झूम उठा। उसने कहा, ये तो बहुत अच्छी है। इन्हें बनाने वाले स्टूडेंट में बहुत प्रतिभा है। एक कलाकार के रूप में उसके करियर को मदद और प्रोत्साहन देने के लिए उसकी हर संभव मदद करनी चाहिए। अगर वह इसी क्षेत्र में रहकर मेहनत करता है, तो इसका भविष्य बहुत अच्छा है। रोसिटी ने देखा कि वह बूढ़ा आदमी काफ़ी उदास था।  

रोसिटी ने उससे पूछा, यह बेहतरीन कलाकार क्या तुम्हारा बेटा है? उस बूढ़े आदमी ने दुखी होकर यह कहा। यह मैं हूं-आज से चालीस साल पहले। काश, यह मैंने पहले आप की यह तारीफ सुनी होती। हतोत्साहित होकर सालों पहले मैंने यह काम छोड़ दिया।

बनावटी जीवन से बचकर रहें

मध्यम उम्र की एक महिला को दिल का दौरा पड़ने पर तत्काल अस्पताल ले जाया गया। ऑपरेशन की टेबल पर मानो उसे बिल्कुल नजदीक से मौत का एहसास हुआ। भगवान को देखकर उसने पूछा,‘हे, भगवान, क्या मेरा अब अंतिम व़क्त आ गया है?’  

भगवान ने कहा, ‘नहीं, अभी तो तुम्हारे पास 43 साल, दो महीने और आठ दिन शेष हैं जीने के लिए।’ बहरहाल, उसका ऑपरेशन अच्छी तरह हुआ और वह पूरी तरह ठीक भी हो गई।  

लेकिल ठीक होने के बावजूद वह महिला अपने घर जाने के लिए तैयार नहीं थी। उसने अस्पताल में ही रहने का निश्चय किया। फिर अस्पताल में ही उसने अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी कराई और अपने चेहरे-मोहरे, होठों आदि को सही कराया। फिर अपने पेट पर चढ़ गई अतिरिक्त चर्बी को हटवाया। इस तरह उसे अपने शरीर में के अंग-अंग में जहां-जहां कोई कमी-खामी दिख रही थी, वह सब ठीक कराई। यहां तक कि उसने अपने बालों के रंग को भी बदलने के लिए किसी को बुला रखा था।  

जाहिर है, उसके पास जीने के लिए काफ़ी व़क्त था, इसलिए उसने अपने आप को काफी अच्छी तरह से मेंटेन कर लिया। इस तरह अंतिम ऑपरेशन के बाद उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।

लेकिन घर के लिए जाते व़क्त रोड क्रॉस करते समय एंबुलेंस की टक्कर में उसकी मौत हो गई। अब भगवान के सामने आने पर उसने कहा, ‘भगवान आपने कहा था कि अभी मेरे पास जीने के लिए 40 साल और हैं?’ इस पर भगवान ने उससे कहा, ‘मैंने आपको नहीं पहचाना।’ 

सबक़ सच बात यही है कि क़ुदरत ने आपको जो रंग-रूप, आकार-प्रकार दिया है, वही सच है। बनावटी जीवन आपके लिए ख़तरा बन सकता है। और आप अपनी पहचान भी खो सकते हैं