Friday, September 17, 2010

पाठशाला

नौजवान जब बच्चा लग रहा था

रेलगाड़ी अपनी पूरी ऱफ्तार से दौड़ रही थी। डिब्बे में बैठा कोई यात्री किताब पढ़ रहा था, कोई कुछ खा रहा था, तो कुछ लोग खिड़की से बाहर निहार रहे थे। खिड़की के पास बैठा एक पिता और उसका पुत्र जाने-अनजाने में सबका ध्यान खींच रहे थे। पुत्र की आयु 24-25 बरस की होगी। चेहरे से वह पढ़ा-लिखा और बुद्धिमान नजर आ रहा था। लेकिन उसकी गतिविधियां देखकर हर कोई हैरान था, सिवाय उसके पिता के।
वह नौजवान लगातार खिड़की से बाहर के नजारों का वर्णन किए जा रहा था। कभी वह पिता की बांह झिंझोड़कर कहता- पापा, देखिए, कितना हरा-भरा पेड़ है। कभी कहता- वाह! वह कौआ कितना काला है! कुछ आगे नदी देखकर वह बच्चों की तरह मचलने लगा- पापा-पापा, नदी का पानी कितना साफ़-स्वच्छ नजर आ रहा है! कभी वह आसमान में उमड़ते बादलों को देखकर ख़ुश होता, तो कभी चिड़ियों के झुंड को देखकर चहकने लगता। 
उसे तो काली-सफ़ेद-भूरी गायों का झुंड भी बहुत ख़ूबसूरत लग रहा था। उस नौजवान को देखकर कोई मुस्करा कर आगे बढ़ जाता, तो कोई उसके पिता को सहानुभूति की दृष्टि से देखता। एकाध ने तो उसकी तरफ़ इशारा करके उसका उपहास भी उड़ा दिया। हालांकि पिता को तो जैसे इस सब की कोई परवाह ही नहीं थी। वह अपने बेटे की ख़ुशी में और ख़ुश हो रहा था। आख़िर एक सहयात्री से रहा नहीं गया। वह कह ही बैठा, ‘भाईसाहब, लगता है आपके पुत्र को कोई मानसिक समस्या है।’ पिता ने बग़ैर बुरा माने जवाब दिया, ‘दरअसल, पांच साल की उम्र में इसकी आंखों की रोशनी चली गई थी और कल ही ऑपरेशन के बाद इसने दुनिया को दुबारा देखना शुरू किया है।’
सबक : 
किसी का भी व्यवहार उसकी परिस्थितियों से संचालित होता है। इसलिए किसी के काम पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देने से पहले जान लें कि उसकी पृष्ठभूमि क्या है
बनावटी जीवन से बचकर रहें
मध्यम उम्र की एक महिला को दिल का दौरा पड़ने पर तत्काल अस्पताल ले जाया गया। ऑपरेशन की टेबल पर मानो उसे बिल्कुल नजदीक से मौत का एहसास हुआ। भगवान को देखकर उसने पूछा,‘हे, भगवान, क्या मेरा अब अंतिम व़क्त आ गया है?’
भगवान ने कहा, ‘नहीं, अभी तो तुम्हारे पास 43 साल, दो महीने और आठ दिन शेष हैं जीने के लिए।’ बहरहाल, उसका ऑपरेशन अच्छी तरह हुआ और वह पूरी तरह ठीक भी हो गई।
लेकिल ठीक होने के बावजूद वह महिला अपने घर जाने के लिए तैयार नहीं थी। उसने अस्पताल में ही रहने का निश्चय किया। फिर अस्पताल में ही उसने अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी कराई और अपने चेहरे-मोहरे, होठों आदि को सही कराया। फिर अपने पेट पर चढ़ गई अतिरिक्त चर्बी को हटवाया। इस तरह उसे अपने शरीर में के अंग-अंग में जहां-जहां कोई कमी-खामी दिख रही थी, वह सब ठीक कराई। यहां तक कि उसने अपने बालों के रंग को भी बदलने के लिए किसी को बुला रखा था।
जाहिर है, उसके पास जीने के लिए काफ़ी व़क्त था, इसलिए उसने अपने आप को काफी अच्छी तरह से मेंटेन कर लिया। इस तरह अंतिम ऑपरेशन के बाद उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
लेकिन घर के लिए जाते व़क्त रोड क्रॉस करते समय एंबुलेंस की टक्कर में उसकी मौत हो गई। अब भगवान के सामने आने पर उसने कहा, ‘भगवान आपने कहा था कि अभी मेरे पास जीने के लिए 40 साल और हैं?’ इस पर भगवान ने उससे कहा, ‘मैंने आपको नहीं पहचाना।’
सबक़
सच बात यही है कि क़ुदरत ने आपको जो रंग-रूप, आकार-प्रकार दिया है, वही सच है। बनावटी जीवन आपके लिए ख़तरा बन सकता है। और आप अपनी पहचान भी खो सकते हैं।

बहादुर योद्धा को ऐसा क्यों लगा

एक बहुत नामी योद्धा था। उसने कई युद्धों में अपने जौहर दिखाए थे। उसे अपनी बहादुरी का बहुत गर्व भी था। एक दिन वह एक संत से मिलने पहुंचा। संत का बहुत नाम था। उनके आश्रम में दूर-दूर से भक्त पहुंचते थे। योद्धा ने जैसे ही आश्रम में प्रवेश किया और उसने संत की कीर्ति देखी, अचानक उसे अपनी हीनता का एहसास होने लगा।
योद्धा के लिए यह बिल्कुल अजूबी भावना थी कि वह तुच्छ महसूस करे। उसने संत से पूछा, ‘आख़िर क्यों मुझे अपने छोटेपन का एहसास होने लगा है? मैंने कई बार मौत का सामना किया, पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा। पर अभी आख़िर क्यों?’ संत ने जवाब दिया, ‘प्रतीक्षा करो। जब सब चले जाएंगे, तब मैं तुम्हें बताऊंगा।’
श्रद्धालु सारे दिन आते रहे और इंतजार करता हुआ योद्धा अंतत: थककर चूर हो गया। शाम ढली, रात आई। अब संत के आसपास कोई नहीं था। योद्धा ने पूछा, ‘क्या अब आप मुझे मेरे सवाल का जवाब दे सकते हैं?’ संत बोले, ‘आओ, कमरे से बाहर चलें।’
संत ने कहा, ‘यह देखो। यह लंबा वृक्ष है और उसकी बग़ल में यह छोटा पेड़। ये दोनों बरसों से मेरी खिड़की के पास जमे हुए हैं और उन्हें कभी कोई समस्या नहीं हुई।
छोटे पेड़ ने बड़े से कभी नहीं पूछा कि मैं आपसे छोटा क्यों महसूस करता हूं। मैंने उसकी कोई आवाज नहीं सुनी। बता सकते हो क्यों?’ योद्धा बोल पड़ा, ‘क्योंकि वे आपस में तुलना नहीं करते।’ संत ने कहा, ‘फिर तुम्हें मुझसे पूछने की जरूरत नहीं है। तुम जवाब जानते हो।’
सबक़
हर किसी की अपनी एक हस्ती होती है। जब हम तुलना करेंगे, तो हर मामले में कोई न कोई हमसे बेहतर होगा ही और यह जान हम दुखी हो जाएंगे। तुलना ही दुख की जड़ है।

क्या कहा गया और क्या अर्थ था

एक पहाड़ी रास्ते पर गाड़ियां आ-जा रही थीं। रास्ता बहुत घुमावदार था। अगले मोड़ से आगे क्या है, वाहन चालकों को कुछ अंदाज ही न हो पा रहा था। ऐसे में लोग न सिर्फ़ धीरे-धीरे गाड़ी चला रहे थे, बल्कि अन्य सावधानियां भी रख रहे थे। आने-जाने वाले वाहन चालक भी जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे से सूचनाएं साझा कर लेते थे।
ऐसे में, पहाड़ के ऊपर की तरफ़ से आती एक कार के ड्राइवर ने चलती गाड़ी की खिड़की से मुंह निकाला और नीचे से ऊपर की ओर जा रही गाड़ी के ड्राइवर की ओर देखते हुए जोर से चिल्लाया- ‘सुअर!’ उसने ऐसा पीछे की ओर आती गाड़ी को देखकर भी किया। यह सुनते ही अगले ड्राइवर की त्यौरियां चढ़ गईं।
उसे हैरानी हुई कि बग़ैर किसी कारण के उसे सुअर कहा गया और हैरानी से भी बढ़कर ग़ुस्सा आया। सो, उसने भी तत्काल खिड़की से सिर बाहर निकाला और चीख़ पड़ा- ‘कुत्ता।’
तब तक दोनों एक-दूसरे के पास से गुजर चुके थे। पहाड़ी रास्ता था। बीच में गाड़ी रोकी भी नहीं जा सकती थी। ‘सुअर’ सुनने वाले ड्राइवर को अब भी आश्चर्य हो रहा था कि उसे बेवजह ऐसा क्यों कहा गया। फिर उसने सोचा कि ऐसा करना उसकी आदत होगी, क्योंकि उसने पीछे आ रही गाड़ी के ड्राइवर के लिए भी यही कहा था।
उसने सोचा, दुनिया में भी अजीब लोग होते हैं। वह ऐसा सोचते हुए जा रहा था कि अचानक झाड़ियों से निकलकर एक सुअर सड़क पर आ गया और उसकी गाड़ी से टकराते-टकराते बचा। तब उसे समझ में आया कि उस ड्राइवर ने उसे सुअर कहकर गाली नहीं दी थी, बल्कि चेताया था।
सबक : 
किसी के शब्दों पर नहीं, उसकी भावनाओं पर ध्यान दें। शब्द और लहजा रूखा हो सकता है, लेकिन प्रतिक्रिया से पहले देख लें कि उन शब्दों का उद्देश्य हमारी ही भलाई तो नहीं।

एक और नई शुरुआत करें

अमरीका के थॉमस अल्वा एडिसन इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों में शुमार होते हैं, जिनके बनाए बिजली के बल्ब ने पूरी दुनिया को नई रोशनी दी। एडिसन के नाम अकेले अमरीका में ही 1,093 आविष्कारों के पेटेंट हैं।
यह 1914 के दिसंबर महीने की बात है। एडिसन की फैक्टरीनुमा प्रयोगशाला में आग लग गई और वह लगभग पूरी तरह से तबाह हो गई। एडिसन के 24 वर्षीय बेटे चाल्र्स को ध्यान आया कि उसके पिता कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। वह धुएं और उड़ती राख़ के बीच उन्हें पागलों की तरह तलाश रहा था।
आख़िर उसने उन्हें, अपने पिता थॉमस अल्वा एडिसन को खोज निकाला। लपटों की रोशनी में उनका चेहरा चमक रहा था। वे तब 67 साल के थे। जवानी उनसे बहुत दूर जा चुकी थी। और हर चीÊा आग की भेंट चढ़ चुकी थी।
चाल्र्स को देखते ही एडिसन चिल्लाए, ‘चाल्र्स तुम्हारी मां कहां हैं?’
चाल्र्स ने जब बताया कि उसे नहीं मालूम, तो उन्होंने कहा, ‘उन्हें ढूंढ़ कर यहां ले आओ। तुम्हारी मां ने अपने पूरे जीवन में ऐसा नÊारा नहीं देखा होगा!’
अगली सुबह तक आग की लपटें ठंडी हो गईं, पर उससे पहले सबकुछ बर्बाद कर गई थीं। फैक्टरी की खंडहर हो चुकी इमारत को देखते हुए एडिसन बोले, ‘ऐसी तबाही का भी बहुत महत्व है। हमारी सारी ग़लतियां जलकर खाक हो जाती हैं। भगवान का शुक्र है कि अब हम नई शुरुआत कर सकते हैं।’
और इस भीषण अग्निकांड के महज तीन ह़फ्ते बाद ही एडिसन ने फोनोग्राफ का आविष्कार कर दिखाया।

सबक 
जो बीत गया, चला गया, उसका दुख मनाने से क्या फ़ायदा? हर दिन एक नया दिन होता है और किसी भी दिन, किसी भी आयु में, किसी भी परिस्थिति में जीवन की नई शुरुआत हो सकती है

मां से छुपाओगे तो कहां जाओगे

महानगरों की बात है, जहां आवास समस्या के चलते किसी लड़के और लड़की द्वारा फ्लैट साझा करने की बात ज्यादा अजीब नहीं समझी जाती। ऐसे में एक मां अपने बेटे से मिलने पहुंची थी, जो फ्लैट में एक लड़की के साथ ‘अलग-अलग’ रहता था। बेटे ने मां की बड़ी आवभगत की। मां ने देखा कि लड़की बड़ी ख़ूबसूरत है और उसके व बेटे के बीच आंखों-आंखों में ही काफ़ी बातें हो रही हैं।
मां क़स्बे से आई थी। उसे पहले से ही शक था। जब बेटे ने मां की निगाहों में संदेह देखा, तो उसने ख़ुद ही सफ़ाई दे दी कि तुम जैसा सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं है। हम सिर्फ़ रसोई साझा कर रहे हैं, रहते अलग-अलग हैं। ख़ैर, मां ने कुछ नहीं पूछा और वह अगले दिन लौट आई। उसके लौटने के बाद लड़की ने ध्यान दिया कि रसोई में रखा चांदी का जार ग़ायब है। उसने यह बात लड़के से कही।
लड़के ने पहले तो कहा कि मां ऐसा नहीं कर सकतीं। लेकिन चूंकि घर में और कोई नहीं आया था, इसलिए उसने मां को ई-मेल किया- ‘प्रिय मां, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम जार ले गई हो। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि तुम जार नहीं ले गई हो। पर सच यह है कि जार यहां से ग़ायब है।’ कुछ दिनों बाद उसे ई-मेल से ही मां का जवाब मिला- ‘प्रिय बेटे, मैं यह नहीं कह रही हूं कि तुम दोनों एक ही कमरे में रहते हो।
मैं यह भी नहीं कह रही हूं कि तुम लोग अलग-अलग कमरों में रहते हो। पर वास्तविकता यह है कि अगर तुम्हारी दोस्त अपने कमरे में रहती, तो उसे तुरंत पता चल जाता कि जिस जार को तुम लोग ग़ायब समझ रहे हो, वह उसके तकिए के नीचे रखा हुआ है।

सबक
मां से कुछ भी नहीं छुपा है। मां से कुछ छुपाना भी नहीं चाहिए। बच्चे की सबसे अच्छी दोस्त मां होती है, इसलिए कोई दुविधा है, तो मां को वह बात बता देनी चाहिए।

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