Friday, September 17, 2010

पाठशाला

एक छोटा बच्ची दिनभर अपनी गुलेल से निशाने साधता रहता। एक मौक़े पर, जब उसके सारे निशाने चूक गए थे, वह बच्च बड़ा निराश था। गुलेल उसके हाथ में थी और जेब में गोटियां। तभी उसने अपनी दादी की पालतू बत्तख़ देखी और हताशा में उसी पर निशाना साध दिया। इस बार गोटी सीधे बत्तख़ के सिर में लगी और वह वहीं ढेर हो गई। उसके सिर से ख़ून बहता देख बच्चे को समझ में आया कि उसने क्या अनर्थ कर दिया। उसे अफ़सोस हुआ और दादी की नाराÊागी का डर भी लगा। सो आनन-फ़ानन में उसने छोटा गड्ढा खोदा और बत्तख़ को गाड़ दिया। बच्चे ने फौरी राहत की सांस ली कि किसी ने उसे ऐसा करते हुए नहीं देखा। लेकिन नहीं, उसकी छोटी बहन ने सबकुछ देख लिया था। 
थोड़ी देर बाद दादी ने आंगन में कपड़े सुखाने के लिए पोती को याद किया, तो वह हंसते हुए कहने लगी, ‘भैया ने आज से घर के कामों में हाथ बंटाने की कसम खाई है, इसलिए कपड़े वही सुखाएगा। क्यों भैया?’ अगले दिन दादी को रसोई में मदद की Êारूरत पड़ी। बहन ने इस बार भी भाई का नाम आगे कर दिया और सहेलियों के साथ तितलियां पकड़ने निकल गई। अब तो यह रोÊा की बात हो गई। भाई आनाकानी करता, तो वह फुसफुसाकर पूछ लेती, ‘बत्तख़ कहां गई?’ जब ह़फ्ताभर हो गया, तो भाई ने सोचा कि अब तो अति हो गई। 
सो, उसने तमाम परिस्थितियों का हवाला देते हुए दादी को पूरी घटना सुना दी और सिर झुकाकर खड़ा रहा। दादी ने अपने नन्हे पोते का गले से लगा लिया और चूमते हुए बोली, ‘बेटा, मैंने तो यह सब उसी दिन छत पर खड़े-खड़े देख लिया था। लेकिन तुम मेरे प्यारे बच्चे हो, इसलिए तुम्हें माफ़ भी कर दिया। इतने दिनों तक तो मैं यह देख रही थी कि आख़िर तुम कब तक छोटी बहन की ब्लैकमेलिंग सहते हो?
सबक़ : बात छोटी हो या बड़ी, किसी की भी ब्लैकमेलिंग सहना अपराध की वास्तविक सÊा से भी Êयादा दुखदायी हो सकता है। बेहतर है कि सबको विश्वास में लेते हुए अपनी ग़लती मान ली जाए
50 रु. में बोलने वाला कुत्ता लेंगे?


एक आदमी ने नया-नया कुत्ता ख़रीदा था, लेकिन चार-छह दिनों बाद ही वह कुत्ता लेकर अपने पड़ोसी के पास पहुंच गया और उससे उसे ख़रीदने के लिए चिरौरी करने लगा। उसने कहा, ‘यह बोलने वाला कुत्ता है।’ पड़ोसी को बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ। वह आदमी बोला, ‘और आप इसे सिर्फ़ पचास रुपए में ख़रीद सकते हैं।’ अब तो पड़ोसी को पक्का यक़ीन हो गया कि वह उससे मÊाक़ कर रहा है। उसने कहा, ‘मÊाक़ करने के लिए क्या मैं ही मिला था?
 दुनिया में कोई भी कुत्ता भौंकने के अलावा और कुछ नहीं बोल सकता।’ पड़ोसी का इतना कहना था कि कुत्ते ने आंखों में आंसू भरकर गिड़गिड़ाते हुए बोलना शुरू कर दिया, ‘प्लीÊा, मुझे ख़रीद लीजिए सर! मेरा मालिक तो पूरा कसाई है। यह न तो मुझे ढंग से खाने को देता है, न ही बाहर निकलने देता है। यह मुझे नहलाता-धुलाता तक नहीं है।’ अपने कुत्ते की ये बातें सुनकर उसके मालिक का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने कहा, ‘देखा आपने, इसीलिए मैं इसे बेचना चाहता हूं।’
 मालिक की प्रतिक्रिया से बेपरवाह, कुत्ते ने बोलना जारी रखा, ‘और सर, मेरी यह दुर्गति तब है, जबकि मैं दुनिया का सबसे शानदार कुत्ता हूं। इससे पहले मैं बिल गेट्स और मुकेश अंबानी जैसे मालिकों के साथ उनके बेडरूम में सोता था। मेरी सेवा-चाकरी के लिए दसियों नौकर-चाकर लगे रहते थे। और आज..आज इस आदमी ने मेरी यह दुर्गति कर दी है।’
 बोलते कुत्ते की कहानी से हैरान पड़ोसी उसके मालिक को लताड़ने के अंदाÊा में बोला, ‘सचमुच! यह तो बोलने वाला कुत्ता है। बेचारा। आपने इतने शानदार कुत्ते की यह गत बना दी है!’ पड़ोसी की बात पर मालिक ने अपने पालतू को खा जाने वाली निगाहों से देखा और दांत पीसते हुए बोला, ‘इसी कारण..इसी कारण मैं इस स्साले कुत्ते को पचास रुपए में बेच रहा हूं। मैं इस झुठल्ले की ऐसी ही मनगढ़ंत बातों से तंग आ चुका हूं।’

सबक़ : झूठ बोलने वाले, लंबी-लंबी फेंकने वाले की क़ीमत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाती, चाहे कुत्ता हो या इंसान। व्यक्ति के झूठ के कारण उसकी अच्छे से अच्छी प्रतिभा पर भी पानी फिर जाता है
बेटियां और बूढ़े पिता का द्वंद्व...

एक बूढ़ा व्यक्ति था, वो किसान था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ। एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा, तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है।
बस यदि वर्षा न आए, तो हमारा कारोबार खूब चलेगा। बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो। फिर पिता दूसरी बेटी से मिला, जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा, तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है, परन्तु वर्षा नहीं हुई है।
यदि अच्छी बरसात हो जाए, तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो। इससे किसान पसोपेश में पड़ गया। उसके लिए यह दुविधा की स्थिति थी, क्योंकि एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी बेटी का इसके विपरीत आग्रह था कि बरसात हो।
पिता बड़ी उलझन में पड़ गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। स्थिति ही ऐसी थी कि एक के लिए प्रार्थना करे, तो दूसरी का नुक़सान। पिता परेशान हो उठा कि आखिर इस मामले का समाधान क्या हो कि दोनों बेटियों का नुक़सान न हो। उसने बहुत सोचा, तो उसे एक तरकीब सूझी।

और इसके बाद वह अपनी बेटियों से मिला। उसने बड़ी बेटी को समझापर लाभ का आधा हिस्सा बड़ी बहन को देने राजी किया। इस तरह उसने अपने द्वंद्व या कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई, तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। इसके बाद, छोटी बेटी से मिलकर उसको भी वर्षा होने 
से विजय पाई
ईश्वर ने परम सत्य कहां छुपाया


एक बार ईश्वर ने सभी प्राणियों को बुलाया, लेकिन मानव को जान-बूझकर छोड़ दिया। दरअसल, वह इंसान से कुछ छुपाना चाहता था। ईश्वर चाहता था कि ‘परमसत्य’ इंसान की पहुंच में न आए।
 इसके लिए उसने सभी प्राणियों से सुझाव मांगे कि आख़िर परमसत्य को कहां छुपाया जाए, जहां तक मानव पहुंच ही न पाए। सभी ने सोचना शुरू किया। सबसे पहले चील बोली, ‘प्रभु, उसे मुझे दे दीजिए, मैं उसे चांद पर गड़ा आऊंगी।’ ईश्वर मनुष्य की क्षमता जानता था, इसलिए उसने तुरंत कहा, ‘नहीं-नहीं, चांद पर पहुंचना बहुत मुश्किल नहीं है। एक न एक दिन इंसान वहां पहुंच ही जाएगा।’ फिर एक मछली बोली कि मैं उसे सागर की अतल गहराइयों में ले जाकर दबा देती हूं। ईश्वर ने फिर प्रतिवाद किया कि सागर भी मनुष्य की पहुंच से दूर नहीं है। किसी न किसी दिन वह उसकी गहराई को भी नाप ही लेगा।
 अबकी बार एक छछूंदर ने सुझाव दिया, ‘मैं उस परमसत्य को धरती के गर्भ में गड़ा देता हूं।’ इस बार भी ईश्वर का वही जवाब था कि वह जगह भी इंसान की पहुंच से ज्यादा दूर नहीं रहेगी। समस्या विकट थी। सभी प्राणी अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से सुझाव दे रहे थे, लेकिन ईश्वर मानव की क्षमताओं से अनजान नहीं था। वह जानता था कि मानव एक न एक दिन संसार के हर कोने को छू लेगा और उससे कुछ भी छुपा न रह जाएगा।
 एक बूढ़ा कछुआ सबकी बातें सुन रहा था। जब सब ने हथियार डाल दिए, तो उसने अपनी महीन आवाÊा में कहा, ‘मेरे ख्याल से उसे इंसान के दिल के भीतर छुपा देना चाहिए। वह वहां कभी नहीं झांकेगा।’ और ईश्वर ने ऐसा ही किया।

1 comment:

  1. तीनों लघु कथाएं बहुत ही अच्छी है...काबिल-ए- तारीफ। पहले तो बच्चों को दादी-नानी ऐसी ही कहानियां सुनाती थीं जिससे उन तक कोई संदेश पहुंचे...मगर आज कहां... बहुत खूब

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