Tuesday, September 21, 2010

पाठशाला



कौन हंसता है कौन रोता है.

एक आदमी साइकोलॉजिस्ट से मशविरा लेने आया था। वह अपनी बारी के इंतज़ार में चेंबर के बाहर बैठा था। उसकी शक्ल से ही लग रहा था कि वह महादुखी मानव है। चेहरा लटका हुआ, होंठों पर हंसी का एक निशान तक न था।वह औरों से बोलना तो दूर, उनकी तरफ़ देख भी नहीं रहा था। कुछ देर बाद उसका भी नंबर आया। साइकोलॉजिस्ट अनुभवी था। वह उसे देखते ही पहचान गया कि यह अवसाद का केस है। फिर भी उसने समस्या पूछी। आदमी ने बोलना शुरू किया,‘डॉक्टर साहब, मैं हमेशा हताशा में ही डूबा रहता हूं। चाहे कुछ भी कर लूं, मन में उत्साह जागता ही नहीं।  

अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं!’ मनोचिकित्सक ने कहा, ‘मेरे साथ उस खिड़की तक आओ।’ जब वह उसके पीछे वहां तक पहुंचा, तो मनोचिकित्सक ने खिड़की से बाहर इशारा करते हुए कहा, ‘तुम दूर वो तंबू देख रहे हो? वह सर्कस का तंबू है। मैंने वह सर्कस देखा है, बहुत शानदार है। वहां तुम्हें ढेर सारे करतब देखने को मिलेंगे,ख़ासतौर पर एक जोकर के कारनामे देखकर तो हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाओगे। वह जब तक तुम्हारी नज़रों के सामने रहेगा, तुम हंसी नहीं रोक पाओगे। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि एक बार उस जोकर की कलाकारी देख लेने के बाद अवसाद ज़िन्दगी में दुबारा तुम्हारे पास नहीं फटकेगा।’
यह सब सुनकर भी उस आदमी के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई। उसका लटका मुंह देखकर साइकोलॉजिस्ट ने कहा, ‘तुम वहां जाकर तो देखो।’ वह आदमी बोला, ‘साहब, वह जोकर मैं ही हूं।’  

सबक: इस दुनिया में हर कोई अभिनय कर रहा है। हंसी-मजाक की ओट में कोई ग़म छिपा रहा है, तो कोई बेवजह आंसू बहाकर औरों से सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा है

सिक्का उछाल जान लो भाग्य

राजा को गुप्तचरों ने सूचना दी कि पड़ोसी राज्य की सेनाएं उस राज्य पर धावा बोलने के लिए निकल चुकी हैं। उसने सेनापति को उन्हें राज्य की सीमा पर रोक देने का आदेश दिया। सेनापति अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त था, क्योंकि उनके पास कहीं ज्यादा बड़ी सेना थी। लेकिन उसके सैनिकों को अपनी जीत पर संदेह था।सेनापति ने कई तरह से समझाया, दोनों सेनाओं की तुलना के ढेर सारे तथ्य बताए, पर सैनिकों के मन में अकारण बैठ गया था कि हमारी हार ही होनी है। बावजूद इसके सेनापति सेना लेकर निकल पड़ा, पड़ोसी सेना को सीमा पर ही रोक देने के लिए। रास्ते में एक मंदिर था। परंपरा के अनुसार वे वहां पूजा के लिए रुके। सैनिकों ने अपनी जीत की कामना की, पर उन्हें अब भी जीत का भरोसा नहीं था।  

तभी सेनापति ने अपने सैनिकों को संबोधित करना शुरू किया। उसने कहा, ‘हम यह सिक्का उछालकर देखेंगे कि नियति में क्या लिखा है। अगर चित आया, तो हमारी जीत होगी और पट आया, तो हार।’ सैनिक उत्सुकता से देखने लगे। सेनापति ने सिक्का उछाला और यह चित था। सैनिकों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी।  

कहना न होगा कि उन्होंने पड़ोसी राज्य की सेना को न सिर्फ़ अपनी सीमा पर रोक दिया, बल्कि काफ़ी दूर तक खदेड़ भी आए। बाद में एक युवा सैनिक ने सेनापति से कहा, ‘सचमुच, जो नियति में लिखा होता है, वही होता है।’ सेनापति ने जवाब देने की बजाय उसे वह सिक्का दिखा दिया। उस सिक्के के दोनों तरफ़ चित वाला ही निशान था। फिर क्या था, सेनापति वहीं अपना माथा पकड़कर बैठ गया। 

सबक : भाग्य में जो लिखा है, वह तो होगा ही, लेकिन भाग्य में क्या लिखा, यह नियति रचने वाले, यानी ईश्वर के अलावा और कोई भी सही-सही नहीं बता सकता

प्रोत्साहित करने की ताक़त.

एक बार एक वृद्ध व्यक्ति 19 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि और कलाकार दांते गैब्रियल रोसिटी के पास पहुंचा। उस वृद्ध व्यक्ति के पास कुछ स्केच और कलाकृतियां थीं, जिन्हें वह रोसिटी को दिखाना चाहता था, जिससे वह जान सके कि ये पेंटिंग कैसी हैं और कम से कम इनके माध्यम से टैलेंट का पता चल जाए। रोसिटी ने उन्हें बड़े ध्यान से देखा।  

शुरुआत की कुछ कलाकृतियां, जिनमें जरा सा भी कला प्रेम नहीं दिख रहा था, रोसिटी को बेकार लगीं, लेकिन वह एक दयालु आदमी था, इसलिए उसने बड़े ही उदार भाव से कहा कि इन तस्वीरों में योग्यता नजर नहीं आती। ऐसा कहते हुए रोसिटी दुखी हुए, लेकिन उस आदमी से झूठ नहीं बोल सकते थे। वह वृद्ध व्यक्ति दुखी था, लेकिन उसे रोसिटी के निर्णय का इंतजार था। उसने रोसिटी से उसका समय लेने के लिए माफी मांगी और उसे कुछ और कलाकृतियां दिखाई। इन्हें एक स्टूडेंट ने बनाया था।  

रोसिटी ने जब इन स्केच को देखा, तो वह उन्हें देखकर खुशी से झूम उठा। उसने कहा, ये तो बहुत अच्छी है। इन्हें बनाने वाले स्टूडेंट में बहुत प्रतिभा है। एक कलाकार के रूप में उसके करियर को मदद और प्रोत्साहन देने के लिए उसकी हर संभव मदद करनी चाहिए। अगर वह इसी क्षेत्र में रहकर मेहनत करता है, तो इसका भविष्य बहुत अच्छा है। रोसिटी ने देखा कि वह बूढ़ा आदमी काफ़ी उदास था।  

रोसिटी ने उससे पूछा, यह बेहतरीन कलाकार क्या तुम्हारा बेटा है? उस बूढ़े आदमी ने दुखी होकर यह कहा। यह मैं हूं-आज से चालीस साल पहले। काश, यह मैंने पहले आप की यह तारीफ सुनी होती। हतोत्साहित होकर सालों पहले मैंने यह काम छोड़ दिया।

बनावटी जीवन से बचकर रहें

मध्यम उम्र की एक महिला को दिल का दौरा पड़ने पर तत्काल अस्पताल ले जाया गया। ऑपरेशन की टेबल पर मानो उसे बिल्कुल नजदीक से मौत का एहसास हुआ। भगवान को देखकर उसने पूछा,‘हे, भगवान, क्या मेरा अब अंतिम व़क्त आ गया है?’  

भगवान ने कहा, ‘नहीं, अभी तो तुम्हारे पास 43 साल, दो महीने और आठ दिन शेष हैं जीने के लिए।’ बहरहाल, उसका ऑपरेशन अच्छी तरह हुआ और वह पूरी तरह ठीक भी हो गई।  

लेकिल ठीक होने के बावजूद वह महिला अपने घर जाने के लिए तैयार नहीं थी। उसने अस्पताल में ही रहने का निश्चय किया। फिर अस्पताल में ही उसने अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी कराई और अपने चेहरे-मोहरे, होठों आदि को सही कराया। फिर अपने पेट पर चढ़ गई अतिरिक्त चर्बी को हटवाया। इस तरह उसे अपने शरीर में के अंग-अंग में जहां-जहां कोई कमी-खामी दिख रही थी, वह सब ठीक कराई। यहां तक कि उसने अपने बालों के रंग को भी बदलने के लिए किसी को बुला रखा था।  

जाहिर है, उसके पास जीने के लिए काफ़ी व़क्त था, इसलिए उसने अपने आप को काफी अच्छी तरह से मेंटेन कर लिया। इस तरह अंतिम ऑपरेशन के बाद उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।

लेकिन घर के लिए जाते व़क्त रोड क्रॉस करते समय एंबुलेंस की टक्कर में उसकी मौत हो गई। अब भगवान के सामने आने पर उसने कहा, ‘भगवान आपने कहा था कि अभी मेरे पास जीने के लिए 40 साल और हैं?’ इस पर भगवान ने उससे कहा, ‘मैंने आपको नहीं पहचाना।’ 

सबक़ सच बात यही है कि क़ुदरत ने आपको जो रंग-रूप, आकार-प्रकार दिया है, वही सच है। बनावटी जीवन आपके लिए ख़तरा बन सकता है। और आप अपनी पहचान भी खो सकते हैं






 

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