Thursday, August 19, 2010

कही अनकही









दीमक
 किसन !—” बड़े साहब ने चपरासी को घूरते हुए पूछा, “तुम मेरे कक्ष से क्या चुराकर ले जा रहे थे?”
कुछ नहीं साहब।
झूठ मत बको!—” बड़े साहब चिल्लाए, “चौकीदार ने मुझे रिपोर्ट किया है, तुम डिब्बे में कुछ छिपाकर ले जा रहे थेक्या था उसमें? सच-सच बता दो नहीं तो मैं पुलिस में तुम्हारे खिलाफ—”
नहींनहीं साहब! आप मुझे गलत समझ रहे हैं—” किसन गिड़गिड़ाया, “मैं आपको सब कुछ सच-सच बताता हूँमेरे घर के पास सड़क विभाग के बड़े बाबू रहते हैं, उनको दीमक की जरूरत थी, आपके कक्ष में बहुत बड़े हिस्से में दीमक लगी हुई है । बसउसी से थोड़ी-सी दीमक मैं बड़े बाबू के लिए ले गया था। इकलौते बेटे की कसम !मैं सच कह रहा हूँ ।
बड़े बाबू को दीमक की क्या जरूरत पड़ गई !बड़े साहब हैरान थे।
मैंने पूछा नहीं,” अगर आप कहें तो मैं पूछ आता हूँ ।
नहींनहीं,” मैंने वैसे ही पूछा, “—अब तुम जाओ।बड़े साहब दीवार में लगी दीमक की टेढ़ी-मेढ़ी लंबी लाइन की ओर देखते हुए गहरी सोच में पड़ गए।
मिस्टर रमन!बड़े साहब मीठी नज़रों से दीवार में लगी दीमक की ओर देख रहे थे, “आप अपने कक्ष का भी निरीक्षण कीजिए, वहां भी दीमक ज़रूर लगी होगी, यदि न लगी हो तो आप मुझे बताइए, मैं यहाँ से आपके केबिन में ट्रांसफर करा दूँगा। आप अपने खास आदमियों को इसकी देख-रेख में लगा दीजिए, इसे पलने-बढ़ने दीजिए । आवश्यकता से अधिक हो जाए तो काँच की बोतलों में इकट्ठा कीजिए, जब कभी हम ट्रांसफर होकर दूसरे दफ्तरों में जाएँगे, वहाँ भी इसकी ज़ररूरत पड़ेगी।
ठीक है, सर! ऐसा ही होगा—” छोटे साहब बोले। देखिए—” बड़े साहब का स्वर धीमा हो गया-हमारे पीरियड के जितने भी नंबर दो के वर्क-आर्डर हैं, उनसे सम्बंधित सारे कागज़ात रिकार्ड रूम में रखवाकर वहाँ दीमक का छिड़काव करवा दीजिएन रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी

गणित
 भूकंप प्रभावित क्षेत्र में निरीक्षण के लिए जा रहे बड़े साहब ने सहायक अभियंता से कहा, “आपको पता ही है कि मैं कल उत्तरकाशी जा रहा हूँ। सुना है,वहाँ जबरदस्त ठंड पड़ रही है। भूकंप पीड़ितों के लिए जो बजट हमें मिला था, उसमें अभी दस हज़ार शेष हैं। इसी मद से आप मेरे लिए दस्ताने,ऊनी टोपी, सन ग्लासेस, जैकेट, स्लीपिंग बैग और दौरे में खाना गर्म रखने के लिए कैसेरोल का एक सैट खरीद लें।” सर!छोटेसाहब ने सकुचाने का सुंदर अभिनय करते हुए कहा, “---अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं भी एडजस्टकरवा लूँ।
ठीक है---ठीक है---बड़े साहब ने जल्दी से कहा,---“पर देखिएगा हमारा कोई आइटमछूट न जाए औ---र---हाँ---,जैकेट और स्लीपिंग बैग हजरतगंज की फुटपाथ पर विदेशी सामान बेचने वालों से ही खरीदिएगा, वे बिल्कुल असली माल रखते हैं। छोटे साहब के जाने के बाद वह काफी निश्चिन्त नज़र आ रहे थे। एकाएक उन्होंने कुछ सोचा और फिर घंटी बजाकर बड़े बाबू को बुलाया।
बड़े बाबू!वह गर्व से बोले-इस महीने हमारा दो दिन का वेतन भूकंप राहत कोष में भिजवाना न भूलिएगा।










आखिरी तारीख
वर्माजी !उसने पुकारा।
बड़े बाबू की मुद्रा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उनकी आँखें बंद थीं और दाँतों के बीच एक बीड़ी दबी हुई थी। ऐश-ट्रे माचिस की तीलियाँ और बीड़ी के अधजले टुकड़ों से भरी पड़ी थी।
सुरेश को आश्चर्य हुआ। द्फ्तर के दूसरे भागों से भी लड़ने-झगड़ने की आवाज़ें आ रही थीं। बड़े बाबू की अपरिवर्तित मुद्रा देखकर वह सिर से पैर तक सुलग उठा। उसकी इच्छा हुई एक मुक्का उनके जबड़े पर जड़ दे ।
वर्माजी, आपने आज बुलाया था!अबकी उसने ऊँची आवाज में कहा।
बड़े बाबू ने अपनी लाल सुर्ख आँखें खोल दीं। सुरेश को याद आया---पहली दफा वह जब यहाँ आया था तो बड़े बाबू के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ था। तब बड़े बाबू ने आदर के साथ उसे बिठाया था और उसके पिता की फाइल ढ़ूँढ़कर सारे कागज़ खुद ही तैयार कर दिए थे। दफ्तर के लोग भी एकाग्रचित् हो काम कर रहे थे।
बड़े बाबू अभी भी उसकी उपस्थिति की परवाह किए बिना टेबल कैलेंडर पर एक तारीख के इर्द-गिर्द पेन से गोला खींच रहे थे। उसने बड़े बाबू द्वारा दायरे में तारीख को ध्यान से देखा तो उसे ध्यान आया, आज महीने का आखिरी दिन है और पिछली दफा जब वह यहाँ आया था, तब महीने का प्रथम सप्ताह था। बड़े बाबू के तारीख पर चलते हाथ से ऐसा लग रहा था मानो वे इकतीस तारीख को ठेलकर आज ही पहली तारीख पर ले आना चाहते थे।
एकाएक उसका ध्यान आज सुबह घर के खर्चे को लेकर पत्नी से हुए झगड़े की तरफ चला गया। पत्नी के प्रति अपने क्रूर व्यवहार के बारे में सोचकर उसे हैरानी हुई। अब उसके मन में बड़े बाबू के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि वह अपनी पत्नी के प्रति की गई ज्यादती पर पछतावा हुआ।वह कार्यालय से बाहर आ गया
फिल्मी आँख
गुनगुनाते हुए वह बस में घुसा, एक सरसरी निगाह सवारियों पर डाली। आँखों ने जैसे ही उस लड़की के चित्र मस्तिक को भेजे, उसका दिल गाने लगा, “तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त,तू---अगले ही क्षण वह उस लड़की के बगल की सीट पर इस तरह सिकुड़ा बैठा था मानो उसे लड़की में कोई दिलचस्पी न हो। उसके चेहरे को देखकर कोई भी दावे के साथ कह सकता था कि वह आसपास से बेखबर किसी घरेलू समस्या के ताने-बाने सुलझाने में लगा है, जबकि वास्तव में वह मस्त-मस्त की धुन के साथ लगातार लड़की की ओर तैर रहा था।
लड़के के इस अभियान से बेखबर लड़की का सिर सामने की सीट से टिका हुआ था, आँखें बंद थीं ।
बस ने गति पकड़ ली थी। ज्यातर यात्री ऊँघ रहे थे। किसी बड़े गड्ढे की वजह से बस को जबदस्त धक्का लगा। मौके का फायदा उठाते हुए उसने अपना शरीर लड़की से सटा दिया। लड़की की तरफ से कोई प्रतिरोध नहीं हुआ । उसे हाल ही में देखी गई फिल्म के वे सीन याद आए, जिनसे हीरो और हीरोइन बस में इसी तरह एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते प्यार करने लगते हैं। दिल की गहराइयों में वह लड़की के साथ थिरकने लगा, “खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों--
लड़की बार-बार अपनी बैठक बदल रही थी, लंबी-लंबी साँसें ले रही थी, सामने की सीट से सिर टिकाए अजीब तरह से ऊपर से नीचे हो रही थी।
दो-तीन बार उसके मुँह से दबी-दबी अस्पष्ट सी आवाज़ें भी निकली थीं । यह देखकर उसे लगा,कि शायद लड़की को उसकी ये हरकतें अच्छी लग रही हैं।
लेकिन तभी बस सिकनेससे पस्त लड़की ने जल्दी से खिड़की का शीशा खोला और सिर बाहर निकालकर उल्टियाँ करने लगी 

7 comments:

  1. lajawaab
    yours blog is very good...
    keep it up

    come to my blog
    http://mydunali.blogspot.com/

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  2. स्वागत है आपका ब्लोग जगत में

    बधाई

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  3. धन्यवाद आप सभी को आप सभी का इसी तरह रेस्पोंसे मिलता रहा तो जल्दी ही बचपन के नाम से नया कोना लिखूगा आप सभी को पसंद आएगा

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  5. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. आपकी लिखने की शैली काफी रोचक है
    लिखते रहिये
    अच्छा लगा

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