Wednesday, August 18, 2010

नयी सोच


एक फलसफा जो जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभयो से बना

जागरू
कितनी अजीब आत्मकेंद्रित प्रवर्ती हे मानव की मद्दद को हाथ नहीं बढाता हा मतलब हो तो हाथ जरुर उठा देता हे

लड़की अपनी धुन में मस्त चली जा रही थी रात के सन्नाटे में उस आधुनिका के सेंडिलो से उठती खट खट की आवाज काफी दूर तक सुनाई दे रही थी जैसे ही वो उस पाश कालोनी के बीचो बीच बने पार्क नजदीक पहुची वह पहले से छिपे दो बदमाश उससे छेड़छाड़ करने लगे
लड़की ने कान्वेंटी अंदाज में ' शट अप यू बदमास ' वगेरह कहकर अपना बचाब करना चाह पर जब वे गन्दी हरकत नापाक हरकते करते हुए उसके कपडे नोचने लगे तो वह बचाओ बचाओ चिल्लाने लगी उसकी चीख पुकार पार्क के चारो और कतार से बनी कोठियो से टकराकर लौट आयी कोई बाहर नहीं निकला
वे लड़की को पार्क के झुरमुट की और खीच रहे थे उनके चंगुल से मुक्त होने के लिए वह बुरी तरह झटपटा रही थी
तभी वहा से गुजर रहे लावारिस कुत्ते की नजर वहा पड़ी और देख कर जोर जोर से भोकने लगा जब उसके भोकने का उन बदमाशो पर कोट असर नहीं पड़ा तो वह बोखला कर इधर उधर दौड़ने लगा कभी घटना स्थल की और जाता तो कभी किसी कोठी के गेट की और जाकर भोकने लगता मानो वहा रहने वालो को घटना के बारे में बताना चाहता हो उसके इस प्रयास पर लोहे के गेटो के उस पार तैनात विदेसी नस्ल के कुत्ते उसे हिकारत से देखने लगे इधर संघर्षरत लड़की के कपडे तार तार हो गए थे हाथ पैर शिथिल पड़ते जा रहे थे बदमाशो को अपने मकसद में कामयाबी मिलती नजर आ रही थी
यह देख कर गली का कुत्ता मुह उठाकर जोर जोर से रोने लगा कुत्ते की रोने की आवाज इस बार इस बार कोठियो से टकराकर वापस नहीं लौटी क्योकि वहा रह
ने वालो को अच्छी तरह मालूम था की कुत्ते का रोना घर में अशुभ होता हे देखते ही देखते तमाम कोठियो में चहल पहल दिखाई देने लगी छतो पर , बालकनियो पर लोग दिखाई देने लगे उनके आदेशो पर बहुत से वाचमेन लाठिय -डंडे लेकर कोठियो से बाहर निकले और कुत्ते पर टूट पड़े



माँ का कमरा
बहू बेटे साथ ले आये , यही काफी था उस माँ के लिए नौकरों के कमरे में भी रहेने को तैयार थी, पर ऐसा कहा सोचा था उसने..........

छोटे पुश्तेनी मकान में रह रही बुजुर्ग बसंती को दूर शहर में रहते बेटे का ख़त मिला - 'माँ ,मेरी तरक्की हो गयी हे कंपनी की और से मुझे बहुत बड़ी कोठी मिली हे रहने को अब तो तुम्हे मेरे पास शहर में आकर रहना ही होगा यहाँ तुम्हे कोई तकलीफ नहीं होगी '



पड़ोसन रेशमा को पता चला तो वह बोली- 'अरी रहने दे शहर जाने को शहर में बहू बेटा के पास रहा कर दुर्गति होती हे वह वचनी गयी थी न अब पछ्ता रही हे,रोती हे नौकरों वाला कमरा दिया हे रहने को न वक्त से रोटी न वक्त से चाय कुत्ते से भी बुरी जून हे
अगल ही दिन बेटा कार लेकर आ गया बेटे की जिद के आगे बसंती की एक नहीं चली , "जो होगा सो देखा जायेगा" की सोच के साथ बसंती अपने थोड़े से सामान के साथ कार में बैठ गयी लम्बे सफ़र के बाद कार एक बड़ी कोठी के सामने रूकी एक जरुरी काम हे माँ, मुझे अभी जाना होगा' कहकर बेटा माँ को नौकरों के हवाले कर गया बहू पहले ही काम पर जा चुकी थी और बच्चे स्कूल . बसन्ती कोठी देखने लगी तीन कमरों में डबल बेड लगे थे एक कमरा बहू-बेटे का होगा दूसरा बच्चो का और तीसरा महेमानो के लिए, उसने सोचा पिछवाड़े में नौकरों के लिए बने कमरे भी वह देख आयी कमरे छोटे थे, पर ठीक थे उसने सोचा उसकी गुजर हो जायेगी बस बहू- बेटा और बच्चे प्यार से बोल ले उसे और क्या चाहिए




नौकर ने एक बार उसका सामान बरामंदे के पास वाले कमरे में टिका दिता कमरा क्या था स्वर्ग लगता था डबल बेड बीचा था गुसलखाना भी साथ था टीवी और टेपरिकाडर भी था बसंती सोचने लगी- काश उसे भी ऐसे ही कमरों में रहने का मौका मिलता वह डरते डरते बेड पर लेट गयी बहुत नर्म गद्दे थे उससे एक लोक कथा की नौकरानी की तरहा नींद नहीं आ जाए और बहू आकर लडे सोचकर वह उठ खड़ी हुईशाम को जब बेटा घर आया तो बसंती बोली बेटा मेरा सामान मेरे कमरे में रखवा दो बेटा हैरान होकर बोला माँ तेरा सामान तो तेरे कमरे में ही रखा हुआ हे नौकर ने
बसंती आश्चर्यचकित रह गए ,यह मेरा कमरा हे डबल बेड वाला
हां माँ जब दीदी आती हे तो तेरे पास ही सोना पसंद करती हे और तेरव पोता-पोती भी तो तेरे पास भी सो जाया करेगे तेरे साथ तू टीवी देख भजन सुन कुछ और चाहिए तो बेझिझक बता देना
उसे आलिंगन में ले बेटे ने कहा तो बसंती की आखो में आंसू आ गए

No comments:

Post a Comment