प्रतिमाएँ
उनका काफिला जैसे ही बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के नज़दीक पहुँचा, भीड़ ने घेर लिया। उन नग-धड़ंग अस्थिपंजर-से लोगों के चेहरे गुस्से से तमतमा रहे थे। भीड़ का नेत्तृव कर रहा युवक मुट्ठियाँ हवा में लहराते हुए चीख रहा था, “मुख्यमंत्री---मुर्दाबाद ! रोटी कपड़ा दे न सके जो, वो सरकार निकम्मी है! प्रधानमंत्री !---हाय!हाय!1” मुख्यमंत्री ने जलती हुई नजरों से वहां के जिलाधिकारी की ओर देखा। आनन-फानन में प्रधानमंत्री जी के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के हवाई निरीक्षण के लिए हेलीकाप्टर का प्रबंध कर दिया गया। वहां की स्थिति सँभालने के लिए मुख्यमंत्री वहीं रुक गए।

मुख्यमंत्री सोच में पड़ गए थे। जब से उन्होंने इस प्रदेश की धरती पर कदम रखा था, जगह-जगह स्थानीय नेताओं की आदमकद प्रतिमाएँ देखकर हैरान थे। सभी प्रतिमाओं की स्थापना एवं अनावरण मुख्यमंत्री के कर कमलों से किए गए होने की बात मोटे-मोटे अक्षरों में शिलालेखों पर खुदी हुई थी। तब वे लाख माथापच्ची के बावजूद इन प्रतिमाओं को स्थापित करने के पीछे का मकसद एकदम स्पष्ट हो गया था। राजधानी लौटते हुए प्रधानमंत्री बहुत चिंतित दिखाई दे रहे थे।
दो घंटे बाद ही मुख्यमंत्री को देश की राजधानी से सूचित किया गया-“आपको जानकर हर्ष होगा कि पार्टी ने देश के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं विशाल प्रदेश की राजधानी में आपकी भव्य,विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया है। प्रतिमा का अनावरण पार्टी-अध्यक्ष एवं देश के प्रधानमंत्री के कर-कमलों से किया जाएगा। बधाई !”घंटियाँ
“कुछ भी कहो, गलत तरीकों से इकट्ठा किया गया रुपया फलता नहीं हैं।” महेन्द्र ने अपना मग बियर से भरते हुए कहा।
“बेकार की बात है,” रतन ने कहा, “आज ऐसे लोग ही फल-फूल रहे हैं।”
.jpg)
“यह संयोग भी हो सकता है।” रतन चिढ़कर बोला।
“नरेश के बिजनेस पार्टनर नागराजन को तो भूले नहीं होंगे। उसने जिस तरह नरेश को धोखा देकर अपनी प्रोपर्टी बनाई, वो किसी से छिपा नहीं है। आज अपने दोनों बेटों से हाथ धो बैठा है।”
महेन्र्द बोलता जा रहा था, पर रतन की आँखों के आगे भारत-पाकिस्तान बँटवारे का वह दिन घूमने लगा था,जब दंगों के कारण दुमेल से भागते हुए अपने पड़ोसी पंडित रामनाथ को उनके कमरे में बंद कर दिया और उनके मंदिर में लगी सोने की घंटियाँ चुराकर हिंदुस्तान भाग आया था। कमरा बंद होने के कारण रामनाथ भाग नहीं पाया था और दंगाइयों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था। आज उसकी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति के पीछे पंडित के मंदिर से चुराए गए सोने का बहुत योगदान था।
“मैंने तो गलत तरीकों से धन बटोरने वालों को तबाह होते ही देखा है।” महेन्द्र ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा।
इतनी देर में रतन बियर के तीन मग और हलक से नीचे उतार चुका था। उसे लगा, आज महेन्द्र जानबूझकर उससे इस तरह की बातें कर रहा है।
“बकवास बंद करो।” एकाएक वह चिल्ला पड़ा।
महेन्द्र ने हैरानी से अपने दोस्त की ओर देखा।
“लगता है---ज्यादा हो गई , चलो भीतर चलकर खाना खाते हैं।” महेन्द्र कुर्सी से उठा तो उसके कोट की आस्तीनों पर लगे पीतल के बटन खनखनाए ।
रतन को लगा, महेन्द्र घंटी बजाकर उसे चिढ़ा रहा है।
“हरामजादे, घंटी बजाता है।” वह चीखा, उसने पूरी ताकत से एक घूँसा अपने दोस्त के जबड़े पर जड़ दिया। इसी झोंक में वह अपना संतुलन भी खो बैठा और मेज, उस पर रखे काँच के सामान समेत वहीं ढेर हो गया---पर घंटियाँ अभी उसके कानों में बज रहीं थीं।“
खरबूजा
बड़े साहब आफिस से घर लौटे तो काफी थके हुए लग रहे थे। चपरासी ने उनके सूटकेस के साथ-साथ एक पुराना टू इन वन और प्रेशर कुकर भी भीतर रखा तो मेम साहब चौंक पड़ीं।
“ये सब किसका है?” उन्होंने साहब से पूछा ।
“वही---चीफ साहब,” वे चिढ़कर बोले, “मीटिंग के बाद चलने लगा तो बोले-हमारा टू इन वन और प्रेशर कुकर कई दिनों से खराब पड़ा है, तुम्हारे शहर में अच्छी दुकानें हैं, रिपेयर कराकर भेज देना।”

“मैं आज विरमानी स्टोर्स गई थी, मैंने बातों ही बातों में उससे कहा कि मिक्सी की मरम्मत के बहुत पैसे ले लिये। तब उसने मुझे बताया कि राम खिलावन ने ही वाउचर में कुछ रुपए बढ़वाए थे।”
“राम खिलावन!” बड़े साहब ने सख्त आवाज़ में कहा, “कब से कर रहे हो चोरी?”
“मैं कुछ समझा नहीं, हुजूर!” वह बिना घबड़ाए बोला।
“विरमानी कह रहा था, तुमने उस ट्यूब लाइट वाले वाउचर में कुछ रुपए बढ़वाए थे?”
“अच्छा, वो” राम खिलावन ने कहा, “आपने उस दिन शाम को मिक्सी रिपेयर करवाने को दी थी, स्टोर बद हो चुका था इसलिए मैं मिक्सी घर ले गया था। हुजूर! मेरी घरवाली थोड़ी तेज है, पूछने लगी-यह क्या है,किसका है। मुझे ‘सबकुछ’ बताना पड़ा। बस, फिर क्या था, पीछे पड़ गई । कहने लगी-साहब लोग द्फ्तर के खर्चे से न जाने क्या-क्या घर ले जाते हैं, मुझे भी एक सिलबट्टा चाहिए। हुजूर आपकी मिक्सी रिपेयर के वाउचर में उसी सिलबट्टे के लिए कुछ रुपए बढ़वाए थे।” राम खिलावन ने रुककर बारी-बारी से साहब और मेम साहब की ओर देखा, फिर ढिठाई से बोला, “इसे चोरी तो नहीं कहेंगे, साहब!”
“तू बहुत बातें बनाने लगा है। चल जा---काम कर्।” इस बार बड़े साहब की आवाज़ खोखली थी
संस्कार
.jpg)
उसे लगा, पिताजी अपनी भीगी आँखों से एकटक उसी की ओर देख रहे हैं। उसने सूखे तौलिए से उनकी रुग्ण,कृशकाया को धीरे-धीरे पोंछा और फिर पत्नी को आवाज दी, “सुनीता ज़रा पाउडर का डिब्बा तो देना!” फिल्मी पत्रिका पढ़ने में तल्लीन पत्नी ने उसकी आवाज़ सुनकर बुरा-सा मुँह बनाया और फिर पाउडर का डिब्बा लेकर बेमन से उसके पास आ गई। तभी पलंग के पास पड़े मल के पाट और बलगम भरी चिलमची पर नज़र पढ़ते ही उसने जल्दी से साड़ी का पल्लू नाक पर रख लिया। उसने चिढ़े हुए अंदाज में पति को घूरा और पैर पटकते हुए लौट गई।
“बेटा,” पिता ने काँपती आवाज़ में कहा, “तुम थक गए होगे। जाओ, आराम करो। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे इस शरीर से जल्द से जल्द मुक्त कर दे।” तभी नन्हा राजू अपने पिता के पास आया, पलंग के पास पड़ी बलगम भरी चिलमची उठाकर बोला, “मैं इछको बाथलूम में लख आऊँ?” वह अपने बेटे को देखता रह गया। पत्नी भी राजू की ओर देखने लगी थी।
“जाओ---रख आओ।” उसकी आवाज़ भर्रा गई ।
“भगवान तुझ जैसा बेटा सबको दे।” वृद्घ की डबडबाई आँखें छलक पड़ी थीं, “तुझे मेरा मल-मूत्र साफ करना पड़ता है---मुझे अच्छा नहीं लगता। अपने साथ तुझे भी नरक में रगड़ रहा हूँ।”
“पिताजी, आप ऐसा क्यों सोचते हैं? यह मेरा कर्त्तव्य है। वैसे भी आजकल के हालात को देखते हुए---” रुककर उसने एक निगाह अपनी पत्नी और बाथरुम से लौटते हुए बेटे पर डाली, “मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ---सिर्फ अपने लिए कर रहा हूँ।”
“बेटा! तुझसे जीतना मुश्किल है--- मुझे ज़रा बिठा दे।” उसने पिता को उठाकर बैठा दिया। उसने एक हाथ से उनकी पीठ को सहारा देते हुए दूसरा हाथ गाव तकिए के लिए बढ़ाया ही था कि पत्नी लपककर उसके पास आई और उसने फुर्ती से तकिया अपने ससुर की पीठ के पीछे लगा दिया ।
दिल को छू लेने वाली
ReplyDeletethanks deepak baba
ReplyDeleteब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteआशा है कि आप अपने लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपके ब्लाग की स्वागत चर्चा पर जाने के लिए यहां क्लिक करें।