Tuesday, September 21, 2010

पाठशाला

मौत के सामने भी अक्ल दौड़ती रही

जंगल घना था। पेड़-झाड़ इतने थे कि राह नहीं सूझती थी। ऐसे में एक बेचारी लोमड़ी के रास्ते में अचानक शेर आ गया। अब लोमड़ी भागे भी तो किधर। उसे डर तो लग रहा था, पर वह थी पक्की लोमड़ी। सो, तेजी से दिमाग़ के घोड़े दौड़ाने लगी। उधर शेर निश्चिंत था कि शिकार कहीं भागकर नहीं जा सकता। 
वह लोमड़ी पर झपटने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक लोमड़ी ने डपटकर पूछा, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरी राह में आने की? क्या तुम्हें उस भगवान का डर नहीं, जिसने मुझे भेजा है?’ शेर ने ऐसे किसी सवाल के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था। एक पल के लिए तो वह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया। फिर जब उसके भीतर का शेर जागा, तो उसने हिम्मत करके सवाल किया, ‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो? क्या सबूत है कि तुम्हें ईश्वर ने भेजा है?’
लोमड़ी तो इस सवाल के लिए तैयार ही खड़ी थी। उसने कहा, ‘इसमें कौन-सी बड़ी बात। तुम मेरे साथ जंगल में घूमो और ख़ुद ही देख लेना। तुम बस मेरे पीछे-पीछे चलो और अपनी आंखों से देख-जान लो कि जंगल के बाक़ी प्राणी मेरी कितनी इज्जत करते हैं। यहां तक कि वे मेरे रास्ते में भी नहीं आते।
सो, शेर लोमड़ी के पीछे-पीछे चलने लगा। और वाक़ई, उसने देखा कि राह में आने वाले छोटे-मोटे जानवर तो काफ़ी दूर से ही दुम दबाकर भाग जाते थे और बड़े जानवर भी उसके रास्ते में आने की बजाय राह बदलकर निकल जाते थे। Êाहिर है, बाक़ी जानवर लोमड़ी के पीछे चल रहे शेर को देखकर डर रहे थे। पर इस उपाय से लोमड़ी की जान बच गई।

सबक : संकट के समय भी दिमाग़ ठंडा होना होना चाहिए और अक्ल के घोड़े दौड़ते रहने चाहिए, क्योंकि अक्सर ऐसे मौक़ों पर सिर्फ़ अक्लमंदी ही होती है, जो हमें उबार सकती है। बुद्धि ही असली मित्र है

जो डरता है वह डरता ही रहता है

एक चूहा था। उसे बिल्ली से बड़ा डर लगता था। हालांकि यह स्वाभाविक है कि चूहे को बिल्ली से डर लगे, पर इस चूहे को कुछ ज्यादा ही डर लगता था। अपने सुरक्षित बिल में सोते हुए भी सपने में उसे बिल्ली नजर आती। हल्की-सी आहट से उसे बिल्ली के आने का अंदेशा होने लगता। सीधी-सी बात यह कि बिल्ली से भयभीत चूहा चौबीसों घंटे घुट-घुटकर जीता था।
ऐसे में एक दिन एक बड़े जादूगर से उसकी मुलाक़ात हो गई। फिर तो चूहे के भाग ही खुल गए। जादूगर को उस पर दया आ गई, तो उसने उसे चूहे से बिल्ली बना दिया। बिल्ली बना चूहा उस समय तो बड़ा ख़ुश हुआ, पर कुछ दिनों बाद फिर जादूगर के पास पहुंच गया, यह शिकायत लेकर कि कुत्ता उसे बहुत परेशान करता है।
जादूगर ने उसे कुत्ता बना दिया। कुछ दिन तो ठीक रहा, फिर कुत्ते के रूप में भी उसे परेशानी शुरू हो गई। अब उसे शेर-चीतों का बड़ा डर रहता। इस दफ़ा जादूगर ने सोचा कि पूरा इलाज कर दिया जाए, सो उसने कुत्ते का रूप पा चुके चूहे को शेर ही बना दिया। जादूगर ने साचा कि शेर जंगल का राजा है, सबसे शक्तिशाली प्राणी है, इसलिए उसे किसी से डर नहीं लगेगा। 
लेकिन नहीं। शेर बनकर भी चूहा कांपता ही रहा। अब उसे किसी और जंगली जीव से डरने की जरूरत नहीं थी, पर बेचारे को शिकारियों से बड़ा डर लगता। आख़िर वह एक बार फिर जादूगर के पास पहुंच गया। लेकिन इस बार जादूगर ने उसे शिकारी नहीं बनाया। उसने उसे चूहा ही बना दिया। जादूगर ने कहा- चूंकि तेरा दिल ही चूहे का है, इसलिए तू हमेशा डरेगा ही। 
सबक : डर कहीं बाहर नहीं होता, वह हमारे भीतर ही होता है। स्वार्थ की अधिकता और आत्म-विश्वास की कमी से हम डरते हैं। इसलिए अपने डर को जीतना है, तो पहले ख़ुद को जीतना पड़ेगा।

भगवान खिलाए कौन-कौन खाए

एक प्रसिद्ध आदमी था। वह ईमानदारी और मेहनत के साथ समाजसेवा के कार्यो के लिए भी जाना जाता था। एक दिन बाजार में एक भिखारी ने उसके आगे हाथ पसारा। समाजसेवी को न जाने क्या सूझा कि उसने भिखारी से कहा, ‘चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें भीख से कुछ ज्यादा देना चाहता हूं।भिखारी को लेकर वह अपने एक परिचित दुकानदार के पास पहुंचा। समाजसेवी ने कहा कि वह उसे कोई काम दे दे। 
चूंकि लोग उस पर भरोसा करते थे, इसलिए दुकानदार ने भी उसके बताए आदमी, यानी भिखारी को कुछ सामान देकर आसपास के गांवों में बेचने का काम दे दिया। कुछ दिनों बाद जब वह समाजसेवी फिर से बाजार से गुजर रहा था, तो उसने भिखारी को हाथ फैलाए हुए पाया। जब उसने काम के बारे में पूछा, तो भिखारी ने बताया, ‘मैं सामान लेकर गांव-गांव घूमता था। एक बार मैंने देखा कि एक अंधा बाज पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। 
मुझे उत्सुकता हुई कि आख़िर वह अपने लिए खाने का इंतजाम कैसे करता होगा! तभी मैंने देखा कि एक और बाज चोंच में खाना भरकर लाया और उसे खिलाने लगा। तभी मेरे दिमाग़ में आया कि भगवान सबकी परवाह करता है। अगर उसने अंधे बाज के लिए भोजन का प्रबंध किया, तो वह मेरे लिए भी जरूर करेगा। इसलिए मैंने काम छोड़ दिया।उसका क़िस्सा सुनकर समाजसेवी ने इतना ही कहा, ‘यह सही है कि ऊपरवाला कमजोरों का भी ध्यान रखता है। लेकिन वह तुम्हें सबल बनने का विकल्प भी देता है। फिर तुमने अंधा बाज बनने की बजाय खाना खिलाने वाला पक्षी बनने का विकल्प क्यों नहीं चुना?’
सबक : भगवान की आड़ में अपनी अकर्मण्यता और आलस को सही न ठहराएं। जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म का महत्व बता दिया, तो बस भगवान भरोसे ही बैठे रहना मूर्खता ही है

1 comment:

  1. तीनों ही लोककथाएं सशक्‍त है आपने हमें पढने का अवसर दिया इसके लिए आभार।

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